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१८८. टिप्पणियाँ

"पागल या महात्मा"

एक मित्रने निम्नलिखित उद्धरण "माई मेगजीन" से नकल करके मेरे पास भेजा है। उनका कहना है कि यह बच्चोंके लिए लिखा गया है और उन्होंने मुझसे कहा है कि मैं इसका उत्तर दूँ:

१९१८ में उसकी आत्माको कुछ हो गया, जो उसकी शक्तिके लिए घातक सिद्ध हुआ। वह न तो महात्मा बना और न राजनीतिज्ञ ही; बल्कि वह एक हठधर्मी बन गया . . . ब्रिटेनके वचनमें आस्था खोनेके साथ-साथ गांधीने अपना मानसिक सन्तुलन भी खो दिया है।

यूरोपीय सभ्यताके प्रति अपने रोषके कारण वह सम्पूर्ण विज्ञान और सम्पूर्ण संस्कृतिको निन्दा करनेकी चरम सीमातक पहुँच गया है। उसके विचारसे न अध्यापक, न डाक्टर तथा न इंजीनियरकी जरूरत है। यह रोगाणु शास्त्री तथा निर्माता दोनोंको उपयोगी नहीं मानता है। किसीको कुछ सीखना नहीं है। आदमीके शरीरको अनन्त कर्मण्यतामें रहना होगा और आत्माको ईश्वरको आवाज सुननेके सिवा और कुछ नहीं करना होगा।

हम उसकी बात उचित ठहराने की कोशिश कर सकते हैं, और कह सकते हैं कि यूरोपीय सभ्यता एक बीमारी है। हम बीमारी और हड़ताल, गन्दी बस्ती और गरीबी, पापाचरण और निर्लज्ज विषयभोगकी आलोचना भले ही कर सकते हैं। लेकिन तथ्य तो यही है कि इंजीनियरोंने ही भारतके रेगिस्तानोंको सींचा है, डाक्टरोंने ही प्लेगसे संघर्ष किया है और स्कूलके अध्यापकोंने ही भारतीयोंके मस्तिष्कको जागरूक बनाया है। वैज्ञानिकके निरन्तर परिश्रम किये बिना बीमारियोंके कारण भारत नष्ट हो जायेगा और बिना ब्रिटेनको सुरक्षाके वह जापानका गुलाम बन जायेगा।

गांधीका विश्वास है कि मानवोंको अतीतकी उसी स्थितिमें वापस जाना चाहिए जब शान्ति और प्रेमका ही राज्य था। हमारा विश्वास है कि बर्बरता और अकर्मण्यताको छोड़कर आत्माको ज्ञान, शक्ति और प्रभुत्वकी ओर आगे बढ़ना चाहिए। गांधीके विचारमें हम गलत रास्तेपर है; हम सोचते हैं कि हमारा रास्ता कठिन होते हुए भी वह हमें श्रेष्ठतर जीवनकी ओर ले जाता है। गांधीका विचार है कि मनुष्यको उसकी आत्मा ही ऊँचा उठाती है और हमारा विचार है कि कभी सन्तुष्ट न होनेवाला मस्तिष्क ही सर्वोत्कृष्ट ढंगसे आत्माको ऊँचा उठा सकता है। हम कर्म, ज्ञान और ऐश्वर्यमें विश्वास करते हैं। गांधी अप्रतिरोध, अज्ञान और अकर्मण्यतामें विश्वास करता है।