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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं स्वीकार करता हूँ कि मेरे चारों ओर प्रकृति निरन्तर गतिशील है और उससे सहयोग करनेके लिए मैं अपनेको तथा अपने साथी कार्यकर्त्ताओंको निरन्तर ऐसे शारीरिक कार्योमें लगाये रखता हूँ, जिन्हें मैं लाभदायक मानता हूँ। लेखकका कहना है कि "ब्रिटेनके संरक्षणके बिना भारत जापानका गुलाम बन जायेगा।" यदि किसी स्कूलके छात्रसे कहा जाये कि वह बताये कि उक्त वक्तव्यमें गलती कहाँ है तो वह भी यही कहेगा कि ब्रिटेनकी गुलामी न रहनेपर भारत एक स्वतन्त्र राष्ट्र हो जायेगा और वह जापान तथा अपने दूसरे एशियाई पड़ोसियोंके साथ शान्ति और मेलसे रहेगा। लेखकका विचार है कि भारतीय सभ्यता आध्यात्मिक जीवनके लिए घातक है। जहाँतक मैं जानता हूँ किसी यूरोपीय विद्वान्ने ऐसा वक्तव्य नहीं दिया। चाहे भारतमें और कुछ न हो लेकिन उसमें एक बात अवश्य है। वह आध्यात्मि सबसे बड़ा भण्डार है। वह आध्यात्मिक जीवनका सर्वोत्कृष्ट प्रतिनिधि है। वह अपने मस्तिष्कको एक क्षणके लिए भी निद्रालु नहीं होने देता।

"कैसे रहना चाहिए"

'यंग इंडिया' में श्री एन्ड्रयूजका लेख पढ़कर एक व्यक्तिने निम्नलिखित समस्या उन्हें लिखकर भेजी थी और उन्होंने उत्तर देनेके लिए कुछ मास पूर्व उसे मुझे दे दिया था।

मैं गाँवमें पैदा हुआ और पाला-पोसा गया। मेरे पिता जब अपने मित्रोंके साथ धार्मिक विषयोंपर बातचीत करते थे तब वे अक्सर कहा करते थे, 'अहिंसा परमोधर्म:'। जैसा कि आप कहते हैं कि अहिंसा मूल सत्य अद्वैतका ही फलितार्थ है, मैं इस सत्यको वास्तविक रूपमें स्वीकार करता हूँ। मैं यह भी स्वीकार करता हूँ कि अद्वैत सम्पूर्ण आध्यात्मिक जीवनको एकतातक ही सीमित नहीं है। जैसा कि आपका विचार मालूम होता है अद्वैतका मतलब है विश्वकी सभी वस्तुओंकी एकता। इसमें किसी तरहका कोई अपवाद नहीं है।

जिस क्षण आदमी अद्वैतको अपना मार्गदर्शक स्वीकार करनेके योग्य बन जाता है उसी क्षण उसकी प्रगति निश्चित हो जाती है। सभी भेदभाव दूर हो जाने चाहिए। हम सब एक हैं। यदि मैं उसे जो कि स्वयं मेरा ही अंग है आघात पहुँचाऊँ तो मुझे कैसे उचित ठहराया जा सकता है। किन्तु यहाँपर सन्देह सिर उठाने लगता है। क्या अहिंसाको तर्कसिद्ध अन्तिम सीमा तक व्यवहारमें लाया जाये? यदि ऐसा किया जाये तो क्या तब भी वह सद्गुण रहेगी?

मेरे पिता 'अहिंसा परमोधर्मः' कहा करते थे। फिर भी जब हमारे परिवारकी भैस दूध देनके लिए सीधे खड़े नहीं रहती थी तब वे डण्डा लेकर उसे खूब पीटते थे। वे ऐसा अपने बच्चोंके लिए दूध प्राप्त करने के लिए करते थे। क्या उनका यह कार्य उचित था?