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१८९. कोहाटकी जाँच

तिरुपुर

१९ मार्च, १९२५

कोहाटकी दुर्घटनाके सम्बन्धमें मैं अपना और मौलाना शौकत अलीका वक्तव्य अब प्रकाशित कर पा रहा हूँ। इससे पहले उसे प्रकाशित करना सम्भव नहीं हुआ; क्योंकि मैं और मौलाना दोनों सफरमें रहे और हम दोनोंकी ठहरनेकी जगह भी हमेशा एक नहीं होती थी। मैं यह निश्चित रूपसे नहीं कह सकता कि इस अवसरपर इन वक्तव्योंको प्रकाशित करनेसे सिवा इसके कि इससे मेरा वादा पूरा होगा और कोई बड़ा लाभ होगा या नहीं। लेकिन इनके प्रकाशनसे एक फायदा जरूर होगा। एक-से ही तथ्योंसे हम लोगोंने जो अनुमान लगाये हैं, उनमें भारी भेद है। गवाहोंकी गवाहीपर भी किसने कितना विश्वास किया इसमें भी फर्क है। जब हमने इस मतभेदको महसूस किया तो हमें दुःख हुआ और इस मतभेदको जितना भी हो सके दूर करनेकी हम दोनोंने कोशिश की। अपने इस मतभेदको हमने हकीम साहब और डा० अंसारीके सामने भी पेश किया और उनकी सलाह माँगी। सौभाग्यसे जब हम इसपर विचार कर रहे थे, पण्डित मोतीलालजी भी वहाँ मौजूद थे। इस विचारविमर्शमें हमें कोई बात ऐसी न मिली जिससे हमारे दृष्टिकोणमें महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आता। यह बहस दिल्ली में हुई थी। हमने फिर यह निश्चय किया कि कुछ घंटे हम दोनों साथ-साथ सफर करें और अपने हृदयकी इस दृष्टिसे परीक्षा करें कि हम अपने वक्तव्योंको बदल सकते हैं या नहीं। कुछ बातोंको हम लोगोंने बदला जरूर लेकिन हमारे मतभेद दूर नहीं हो सके। हम लोगोंने हकीम साहबके इस सुझावपर भी, जिसका कुछ अंशमें पण्डित मोतीलालजीने भी समर्थन किया था, विचार किया है कि हमारा वक्तव्य प्रकाशित ही न किया जाये। लेकिन हम, कमसे-कम मैं तो इस नतीजेपर पहुँचा हूँ कि जनताको जो मुझे और अली भाइयोंको कुछ सार्वजनिक प्रश्नोंपर हमेशा एक मानती थी, यह भी जान लेना चाहिए कि कुछ प्रश्नोंपर हममें भी मतभेद हो सकता है। इस मतभेदके बावजद हमारे मनमें यह शंका नहीं आई कि हममें से किसीने जानबझकर पक्षपात किया है या सत्य प्रमाणोंको तोड़-मरोड़कर उससे अपना मतलब निकाला है और न इससे हमारे आपसी प्रेममें फर्क ही आया है। हम यदि खुले तौरसे अपने मतभेदोंको स्वीकार कर लेंगे तो वह जनताके लिए आपसी सहनशीलताका एक पदार्थपाठ बन सकेगा। मैं यह कह देना चाहता हूँ कि इस मतभेदको दूर करनेके प्रयत्नमें मैंने या मौलाना साहबने कोई बात उठा नहीं रखी है। लेकिन अपनी रायको छिपानेकी भी हम लोगोंकी कोई

१. इसका मसविदा (एस० एन० १०६७६ आर०) गांधीजीने रावलपिण्डीसे लौटते हुए तैयार किया था। देखिए "कोहाटके हिन्दू", ९-२-१९२५।