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कोहाटकी जाँच

धर्मान्तरको वास्तविक धर्मान्तर नहीं कह सकते) से हिन्दू लोग बिगड़े और उन्होंने उसके विरुद्ध जो कार्रवाई की उससे मुसलमान लोग उससे भी ज्यादा बिगड़ उठे। दूसरा कारण था कोहाटके हिन्दू व्यापारियोंको निकाल देनेकी पराचाओं (मुसलमान व्यापारी) की इच्छा। और तीसरा कारण मुसलमानोंका इस अफवाहसे उत्तेजित होना था कि सरदार माखनसिंहजीके पुत्रने किसी विवाहित मुसलमान लड़कीका हरण किया है।

इन सब कारणोंका परिणाम यह हुआ कि दोनों कौमोंके बीच बड़ा तनाव आ गया। इस आगके एकदम भड़क उठनेका कारण हुई सनातन धर्म सभाके मन्त्री श्री जीवनदासकी मशहूर पत्रिकाकी एक कविता। यह पत्रिका रावलपिंडीमें प्रकाशित होकर कोहाटमें पहुँची। उसमें श्रीकृष्ण और हिन्दू-मुस्लिम ऐक्यकी तारीफमें कितनी ही कविताएँ और भजन थे। लेकिन उसमें वह अपमानजनक कविता भी थी, जो जानबूझ कर मुसलमानोंके दिलोंको दुखानेके लिए लिखी गई थी। वह श्री जीवनदासकी लिखी हुई नहीं थी और न वे उस पत्रिकाको मुसलमानोंको चिढ़ानेके लिए कोहाट लाये थे। जैसे ही सनातन धर्म सभाका इस बातकी ओर ध्यान खींचा गया, उसने उस कविताके लिए लिखित माफी माँगी और बची हुई प्रतियोंमें से उसे निकलवा दिया। उससे मुसलमानोंको सन्तोष हो जाना चाहिए था लेकिन उन्हें सन्तोष नहीं हुआ। बची हुई प्रतियाँ जो मुसलमानोंके मुताबिक ५०० से कुछ अधिक और हिन्दुओंके मुताबिक ९०० से कुछ अधिक थीं टाउन हाल में लाई गईं और डिप्टी कमिश्नर और मुसलमानोंकी एक बड़ी भीड़के सामने सार्वजनिक तौरपर जला दी गई। पत्रिकाके मुख्य पृष्ठपर श्रीकृष्णकी तस्वीर भी थी। श्री जीवनदासको गिरफ्तार किया गया। यह घटना ३ सितम्बर, १९२४ को हुई। ११ तारीखको वे अदालतमें पेश किये जानेवाले थे। हिन्दुओंने अदालतसे बाहर ही आपसमें निपटारा करनेकी कोशिश की। इसके लिए पेशावरसे खिलाफतवालोंका एक शिष्टमण्डल भी आया था। मुसलमान लोग शरीयतके मुताबिक जीवनदासका इन्साफ करना चाहते थे। हिन्दुओंने इससे इनकार किया लेकिन खिलाफतवालोंके निर्णयको मानने के लिए वे राजी हो गये। लेकिन सब कोशिशें बेकार गईं। इसलिए हिन्दुओंने श्री जीवनदासको रिहा करनेके लिए अर्जी दी। ८ सितम्बरको जमानत लेकर और इस शर्तपर कि वे कोहाट छोड़कर चले जायेंगे, उन्हें छोड़ दिया गया। उन्होंने तो कोहाट एकदम छोड़ दिया। लेकिन मुकदमेसे पहले उनके इस प्रकार छूट जानेके कारण मुसलमानोंका क्रोध भड़क उठा। ८ सितम्बरकी रातमें उनकी एक सभा हुई जिसमें बड़े जोशीले व्याख्यान हुए। उसमें यह निर्णय हुआ कि वे सब मिलकर डिप्टी कमिश्नरके पास जायें और जीवनदासको फिर गिरफ्तार करनेके लिए और सनातन धर्म सभाके कुछ और सदस्योंको भी गिरफ्तार करनेकी माँग करें। और डिप्टी कमिश्नरके यह बात न माननेपर हिन्दुओंसे पूरा-पूरा बदला लेनेकी धमकी

१. मूल मसविदेमें वाक्य इस प्रकार है: "(३) टर्कीके विजय सम्बन्धी समारोहोंमें हिन्दुओंके भाग न लेनेके कारण मुसलमान नाराज थे।"

२. मूल मसविदेमें यह वाक्य भी है: "यह मामला झूठा साबित हुआ है।"