पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/३६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३३६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भी दी गई थी। आसपासके गाँवोंको सन्देश भेजे गये कि लोग सुबह इस सभामें आ कर शामिल हों। पीर कमाल साहबके मुताबिक दूसरे दिन गुस्सेसे भरे हुए कोई दो हजार मुसलमान टाउन हालकी तरफ रवाना हुए। डिप्टी कमिश्नरने उनसे प्रार्थना की कि उनमें से कुछ थोड़े लोग आकर उनसे मिलें। लेकिन लोग न माने और उन्हें मजबूरन बाहर आकर इतनी बड़ी भीड़का सामना करना पड़ा। उन्होंने उनकी माँग स्वीकार कर ली, और अपनी जीतपर खुश भीड़ तितर-बितर हो गई।

पिछले हफ्तेमें हिन्दू लोग डरके मारे घबड़ा गये थे। उन्होंने ६ सितम्बरको एक पत्र लिखकर मुसलमानोंमें फैले हुए जोशकी डिप्टी कमिश्नरको खबर दी। लेकिन उनकी हिफाजतके लिए डिप्टी कमिश्नरने कोई कदम नहीं उठाये। ८ तारीखको रातमें जो सभा हुई थी उसकी उन्हें खबर थी। उन्होंने ९ तारीखकी सुबह अपना भय अधिकारियोंपर प्रकट करनेके लिए, कितने ही तार भेजे और श्री जीवनदासको फिर गिरफ्तार न करनेका अनुरोध किया। अधिकारियोंने फिर भी कुछ ध्यान न दिया। टाउन हालसे वापस आकर भीड़ने क्या किया इसपर बड़ा ही मतभेद है। मुसलमान कहते हैं कि हिन्दुओंने ही पहले गोली चलाई थी। उससे एक मुसलमान लड़का मर गया और दूसरा घायल हो गया। इससे उस भीड़का गुस्सा भड़क उठा जिसके फलस्वरूप लूटमार और आगजनी आदि वारदातें हुई। हिन्दुओंका कहना है कि मुसलमानोंने ही पहले गोली चलाई थी और हिन्दुओंने बादमें आत्मरक्षा करनेके लिए गोलियाँ चलाई। वे कहते हैं कि यह लूटना, आग लगाना इत्यादि कार्रवाइयाँ पहले ही से निश्चित योजनाके अनुसार और इशारेपर की गई थीं।

इसका कोई ठीक प्रमाण नहीं मिलता है इसलिए मैं कोई निश्चित निर्णयपर नहीं पहुँच सका हूँ। मुसलमानोंका कहना है कि यदि हिन्दुओंने पहले गोली न चलाई होती तो कुछ भी नुकसान न होता। मैं इसे नहीं मान सकता। मेरा खयाल तो यह है कि हिन्दुओंने गोलियाँ चलाई होती या न चलाई होतीं, कुछ नुकसान तो जरूर ही होना था।

किसीने भी पहले गोली क्यों न चलाई हो, मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि गोली चलनेके पहले ही भीड़ने सरदार माखनसिंहका बाग उजाड़ दिया था और उनके मकानमें आग लगा दी थी। इसमें भी कोई शक नहीं कि हिन्दुओंने किसी समय गोलियाँ जरूर चलाई थीं। जिनसे कुछ मुसलमान मारे गये और कुछ जख्मी हुए थे। मेरा खयाल यह है कि अपनी विजयपर इतराती हुई वह भीड़ जब चारों तरफ बिखरने लगी तब जाते-जाते उसने हिन्दुओंके घरों और दुकानोंके सामने कुछ उत्तेजनात्मक प्रदर्शन जरूर ही किये होंगे। जैसा कि मैं ऊपर कह चुका हूँ हिन्दू घबड़ा ही रहे थे और उन्हें हरदम उपद्रव मचनेका डर लगा हुआ था। इसलिए कोई आश्चर्य -की बात नहीं यदि वे उनके प्रदर्शनोंको देखकर काँप उठे हों और उनमें से किसीने गोली चलाकर भीड़को भगा देना चाहा हो। लेकिन मुसलमानोंका गुस्सा तो इससे जरूर ही बढ़ता, क्योंकि उन्हें हिन्दुओंकी तरफसे मुकाबलेको आदत ही न थी। जैसा कि पीर साहब कहते हैं कि सीमा प्रान्तके मुसलमान अपनेको 'नायक' (रक्षक) और हिन्दुओंको