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कोहाटकी जाँच

कैसे लिया। यदि इस डरसे कि कबाइली मुसलमान फिर दंगा मचायेंगे, सरकार मुकदमे नहीं चलाना चाहती थी तो उसे यह बात साफ-साफ कह देनी चाहिए थी और मुकदमे चलानेसे इनकार कर देना था; और बादमें सरकारको दोनों कौमोंमें बाइज्जत सुलह व मैत्री करानेका प्रयत्न करना चाहिए था।

यह समझौता मूलतः गलत है, क्योंकि इसमें खोये और नष्ट मालकी क्षतिपूर्तिका कोई उल्लेख नहीं है। और यह इसलिए भी बुरा है कि इसके अनुसार श्री जीवनदासपर, जिन्हें बेकार ही बलिका बकरा बनाया जा रहा है, अभी मुकदमा चलाया जानेवाला है।

इसलिए यदि सचमुच दिलोंसे द्वेष दूर करना है और सच्ची सुलह करनी है तो यह आवश्यक है कि मुसलमान हिन्दू आश्रितोंको बुलाकर उन्हें उनकी हिफाजतका यकीन दिलायें और उनके मन्दिरों और गुरुद्वारोंको फिरसे बनाने में मदद करनेका वचन दें।

लेकिन सबसे बड़ा आश्वासन तो उन्हें इस बातका देना होगा कि जबरदस्ती किसीका भी धर्म परिवर्तन नहीं किया जायेगा और दोनों कौमें ऐसे धर्म परिवर्तनोंको कबूल भी न करेंगी। सिर्फ वही धर्म परिवर्तन माना जायेगा जिसके साक्षी दोनों कौमके अगुआ रहेंगे और जिसका धर्म परिवर्तन हो रहा हो वह यह अच्छी तरह समझता हो कि वह क्या कर रहा है। मैं स्वयं तो यही पसन्द करूँगा कि धर्मान्तर और शुद्धि सब, पूरी तरह बन्द कर दिये जायें। हर व्यक्तिका धर्म उसका अपना निजी मामला है। बालिग स्त्री या पुरुष जब या जितनी दफा चाहें अपना धर्म बदल सकते हैं। किन्तु यदि मेरा बस चलता तो मैं मनुष्यके अपने व्यक्तिगत आचरणसे दूसरेको प्रभावित करनेके अलावा और सभी प्रकारके प्रचार-कार्य बन्द कर देता। सीमा प्रान्तमें किसी सच्चे धर्म परिवर्तनके होनेकी बात भी मैं सोच नहीं सकता। हिन्दू लोग वहाँ सिर्फ ऐसे व्यापारकी गरजसे रहते हैं, संख्यामें बहुत ही कम और हथियार चलाना न आने पर भी वे ऐसे बहुसंख्यक लोगोंके साथ रहते हैं जो शारीरिक शक्तिमें और हथियार चलाने में उनसे कहीं बढ़कर हैं। ऐसी परिस्थितिमें दुर्बल हृदयके मनुष्यका सांसारिक लाभके लिए इस्लामको अंगीकार करनेके लोभसे बचना कठिन होता है।

ऐसा आश्वासन उनकी ओरसे मिले या न मिले, हृदयका सच्चा परिवर्तन सम्भव हो या न हो, मुझे तो जो रास्ता अपनाना चाहिए वह स्पष्ट दिखाई दे रहा है। जबतक यह विदेशी सत्ता कायम रहेगी उसके साथ कहीं-न-कहीं सम्बन्ध रखना भी अनिवार्य होगा। लेकिन जहाँ मुमकिन हो वहाँ उससे सब प्रकारके ऐच्छिक सम्बन्ध तोड़ देने चाहिए, यही एक रास्ता है जिससे कि हम लोग आजादी महसूस कर सकते हैं और उसका विकास कर सकते हैं। जब एक बहुत बड़ी संख्यामें लोग आजादी महसूस करने लगेंगे, हम स्वराज्यके लिए तैयार हो जायेंगे। स्वराज्यके सन्दर्भमें ही मैं ऐसे सवालोंके जवाब सुझा सकता हूँ। इसलिए मैं भविष्य के राष्ट्रीय लाभकी वेदीपर वर्तमान व्यक्तिगत लाभोंका बलिदान करना चाहूँगा। यदि मुसलमान हिन्दुओंकी ओर मित्रताका हाथ बढ़ानेसे इनकार करें और कोहाटके हिन्दुओंको सब-कुछ खोना पड़े,