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भाषण: अन्त्यज परिषद्, सोजित्रामें

बनाकर खायें। आपका जन्म जूठन खानेके लिए नहीं हुआ है। आपके भी आँख है, नाक है, कान हैं। आप पूरे मनुष्य हैं, इसलिए आप मनुष्यत्वकी रक्षा करना सीखें।

ऐसे भी बहुतसे लोग हैं जो आपसे आकर कहेंगे कि तुम्हारा हिन्दू धर्म किसी कामका नहीं है। वह तुम्हें मदरसे या मन्दिर जानेकी इजाजत नहीं देता। तो उनसे कहना कि हम अपने हिन्दू भाइयोंसे स्वयं निपट लेंगे, भाई-भाई या बाप-बेटे यदि लड़ें तो जिस तरह कोई उनके बीच नहीं पड़ता उसी तरह आप भी हमारे बीच न पड़िए--आप उन्हें यह जवाब दें और अपने धर्मपर आरूढ़ रहे। मैं खुद जात-बाहर हूँ, मेरे जैसे कितने ही लोग जात-बाहर हैं, तो क्या इससे मैं अपना धर्म छोड़ दूँ। कितने ईसाई मित्र मुझसे कहते हैं कि तुम ईसाई हो जाओ। मैं उनसे कहता हूँ मझे अपने धर्ममें कोई कमी नहीं मालूम होती, मैं क्यों उसे छोड़ूँ? मैं भले ही जात-बाहर रहूँ, पर यदि मैं पवित्र हूँ, स्वच्छ हूँ तो मुझे किस बातका दुःख हो सकता है? यदि कोई हिन्दू इसलिए मुझे सताये कि मैं अन्त्यजोंको गले लगाता हूँ, तो क्या मैं हिन्दू धर्म छोड़ दूँगा? हिन्दूपन मेरे अपने लिए है, मेरी आत्माके लिए है। ईसाई और मुसलमान दोनोंसे आप यह बात कहें और हिन्दू धर्ममें दृढ़ रहें। अन्त्यज लोग शतरंजके मोहरे या बाजी नहीं हैं कि जो चाहे उनसे खेल करें। मैं आपको भाई-बहन कहता हूँ, आपके पास आता हूँ, सो अपनी गरजसे। इसमें मेरा यह स्वार्थ है कि मेरे पूर्वजोंने आपके साथ जो पाप किया है, मैं उसे धो डालूँ। पर आपके प्रति यदि कोई कुछ पाप करता है तो पापका भागी वह होता है, आप नहीं। इसलिए आप धर्मका त्याग क्यों करें? प्रायश्चित्त तो हमें करना है। आप रामनाम क्यों छोड़ें? रामका यह न्याय है कि जो रामका सेवक है, रामका दास है, उसे वह दुःख दिया ही करता है और इस तरह उसकी आजमाइश करता है। मैं चाहता हूँ कि आप इस आजमाइशमें पूरे उतरें।

आखिरमें मुझे आपसे यह कहना है कि मनमें दया रखें क्योंकि दुनियाके हम सब प्राणी परस्पर प्रेमके बलपर जीते हैं। और अन्तमें यह कहना चाहूँगा कि आप सब चरखा चलायें, खादी बुनें और खादी ही पहने।

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ७