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भाषण: पुदुपालयमकी ग्रामीण सभामें

चाहूँगा कि आपमें से हर व्यक्ति आजसे हाथकती और हाथबुनी खादीके सिवा और कुछ न पहननेका वादा करे।

मैं आपसे यह भी कहना चाहूँगा कि जिनके घरमें अभीतक चरखा न आया हो वे चरखा खरीदें। चरखा हमारे लिए कामधेनु होगा। यह जानकर मुझे अत्यन्त प्रसन्नता हुई कि हमारे मित्र रत्नसभापति गोंडरने अपने परिवारके लिए एक नहीं बल्कि कई चरखे लिए हैं। मुझे जब कल उनके घर जानेका अवसर मिला तब घरकी महिलाओंको कातते हुए देखना मुझे बहुत अच्छा लगा। श्री गोंडरने उनके द्वारा कते हुए सूतसे बुने कपड़े पहन रखे थे। वे और उनका सारा परिवार सिर्फ खद्दरके ही कपड़े पहने हए था। ईश्वरकी कपासे उनके पास खूब धन है; लेकिन उन्होंने धनके लिए चरखे और खद्दरको नहीं अपनाया बल्कि देशके लिए, धर्मके लिए ऐसा किया है, किन्तु हम लोगोंको, जो गरीब है, खुद अपने लिए ऐसा करना चाहिए।

मुझे एक सज्जनने कुछ रुपये दिये हैं कि मैं भोजन खरीदकर गरीबोंमें बाँटूँ। गरीबसे-गरीब व्यक्तिमें भी अपनी रोटी कमानेकी सामर्थ्य है। मैं मुफ्त रोटी देने में विश्वास नहीं करता। और न मैं इस बातपर विश्वास करता हूँ कि जो लोग कमा सकते हैं उन्हें वस्त्र दिये जायें। मेरे विचारमें जब धनी लोग बिना सोचे-समझे गरीबोंको पैसा देते हैं तब वे गलत ढंगसे दान करते हैं। ऐसा वे केवल अपने सन्तोषके लिए करते हैं। इस प्रकारका दान तो केवल उन्हीं लोगोंको देना चाहिए जो कि अपंग हैं, लंगड़े या अन्धे हैं या किसी और कारणसे काम करने में असमर्थ हैं।

इसलिए श्रीयुत च० राजगोपालाचारीके साथ विचार-विमर्श करके मैं इस नतीजेपर पहुँचा हूँ कि इस धनसे कपड़ा खरीदकर उसे इस गाँवके या यहाँ बैठे हुए गरीबोंको बाजार भावसे कुछ सस्ते दामोंपर बेच दिया जाये। साधारण तौरपर मुझे स्वीकार करना होगा कि प्रति गजके हिसाबसे देखा जाये तो बाजारमें बेचे जानेवाले कपड़ेसे खद्दर महँगा है, और बहुतसे गरीब लोगोंने मुझसे कहा है कि यदि खद्दर बाजारके कपड़े के भावसे बेचा जाये तो वे खुशी-खुशी उसे पहनेंगे। इसलिए मैं आपके सामने यह प्रस्ताव रखता हूँ कि आप लोगोंमें जो सचमुच गरीब हैं और जो अधिक पैसा खर्च नहीं कर सकते वे अपना नाम दर्ज करायें और वादा करें कि इसके बाद वे केवल खद्दर पहनेंगे। ऐसे लोगोंको बाजारके मुकाबले सस्ते दामोंपर खद्दर मुहैया किया जायेगा। और यदि यहाँ गरीबोंकी संख्या इतनी ज्यादा है कि सबको इस दानसे खद्दर मुहैया न किया जा सके तो मैं अधिक दाम प्राप्त करनेका प्रबन्ध करूँगा, बशर्ते कि आप लोग जो यहाँ मौजूद हैं, केवल खद्दर पहननेका वादा करें। इस अच्छी वस्तुका हमने त्याग कर दिया था। इसे हमें अब फिरसे अपनाना चाहिए। अब मैं आपसे उस बुरी बातके बारेमें कहना चाहता हूँ जिसे छोड़नेसे हम इनकार करते हैं।

वह बुरी चीज है अस्पृश्यता। यह एक घोर अभिशाप है जो हमारे देश और हमारे धर्मका सर्वनाश कर रहा है। सनातनी हिन्दू होने के नाते मैं आपको बता सकता हूँ कि जिस रूपमें अस्पृश्यताका व्यवहार आज हो रहा है, हमारा धर्म उसकी पुष्टि

१. पुदुपालयमके जमींदार।