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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं करता। यदि 'भगवद्गीता' हमारा धर्मग्रन्थ है तो मेरे विचारमें अस्पृश्यता एक पाप है। वर्ण केवल चार होते हैं, पाँच नहीं। इसमें कोई शक नहीं कि स्मृतियोंमें कुछ ऐसे श्लोक है जिनमें अस्पृश्यताका उल्लेख है, लेकिन आज-जैसी अस्पृश्यताका नहीं। वह अस्पृश्यता कुछ व्यवसायों और कुछ अवस्थाओं--अस्थायी अवस्थाओं--तक सीमित है। हो सकता है कि मासिक धर्मके दिनोंमें अपनी माँ, बहन अथवा पत्नीको मैं न छुऊँ। जब मेरी माँ अपने दूसरे छोटे बच्चोंको साफ करती है तब वह स्नान कर लेने तक अछूत रहती है। इसी प्रकार वह भंगी भी जो मेरी टट्टी साफ करता है तबतक अछूत है जबतक कि वह टट्टी साफ करने के बाद अपनेको साफ नहीं कर लेता। अस्पृश्यता एक अस्थायी अवस्था है जिसका व्यवहार केवल ऐसे व्यवसायोंके साथ किया जाता है जो गन्दे कामसे सम्बद्ध हैं। किन्तु किसी व्यक्तिको इसलिए अछूत समझना पाप और अपराध है कि वह किसी विशेष जातिमें पैदा हुआ है। आखिर शास्त्र भी हमें क्या आदेश देते हैं; यही कि किसी खास आदमीको छूनेपर हम स्नान करें। किन्तु आजकी अस्पृश्यताने हिन्दू जातिके एक पंचमांशको नीच बना दिया है। इसके कारण हम अपने देशके लोगोंको दलित कर रहे हैं। इससे ऊँच-नीचके भेदभाववाली व्यवस्था खड़ी हो गई है। तथाकथित सवर्ण हिन्दू, ब्राह्मण और अब्राह्मण अछूतों और पंचम जातिके साथ घृणा और अवज्ञाका व्यवहार करते हैं। वे उन्हें बुरा और गन्दा खाना देकर पाप करते हैं। वे सार्वजनिक सड़कोंका उपयोग करनसे उन्हें मना करके पाप करते हैं। वे हर तरहसे उनका अपमान करते हैं। मैं यह कहनेका साहस करता हूँ कि अपने बन्धुओंके साथ इस प्रकारके अमानवीय व्यवहार करनेका हमारे शास्त्रोंने हमें कोई अधिकार नहीं दिया है। यह कहना कि सवर्ण हिन्दुओंको साँप या बिच्छू द्वारा काटे गये अछूतकी सेवा नहीं करनी चाहिए, मानवीयता और उस धर्म, अहिंसा धर्मके विरुद्ध है जिसके अनुयायी होनेका हम दम भरते हैं। इसके विपरीत मेरा धर्म, हिन्द धर्म, मुझे सिखाता है कि यदि मेरे अपने पुत्र और एक अछूतको साँपने काटा हो और मेरे सामने सवाल यह हो कि दोनोंमें से पहले किसको बचाना चाहिए तो उस स्थितिमें अपने पुत्रको छोड़कर अछूतको बचाना ही मेरा परम कर्त्तव्य है। यदि मैं उस अछूत बालकको छोड़ दूँगा तो ईश्वर मुझे कभी क्षमा नहीं करेगा। सम्पूर्ण रूपसे आत्मोत्सर्गके सिवा आत्मज्ञानका और कोई मार्ग नहीं है। इसलिए मैं आपसे कहता हूँ कि यह बुरी प्रथा कितने वर्षोंसे चली आ रही है इसका खयाल किये बिना आप इसे छोड़ दें।

तीसरी चीज है मद्यपानका अभिशाप। मैं जानता हूँ कि इस दक्षिणी प्रदेशमें बहुतसे लोगोंको मद्यपानकी लत है। मैं आशा करता हूँ कि इस सभामें बैठा प्रत्येक व्यक्ति, जिसे मद्यपानकी लत है, उसे एकदम छोड़ देगा। मद्यपानसे मनुष्य अपने को भूल जाता है। वह कुछ समयके लिए मानव नहीं रहता। वह जानवरसे भी बदतर हो जाता है। उसका अपनी जुबान और अपने हाथ-पैरोंपर कोई नियन्त्रण नहीं रहता। मद्यपानसे कभी किसीका भला नहीं होता। इसलिए मुझे आशा है कि आप मद्यपानकी इस बुराईके विरुद्ध अपनी पूरी शक्ति लगाकर संघर्ष करेंगे।