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१९४. भाषण: तिरुच्चंगोड़में

२१ मार्च, १९२५

भाइयो,

मैं इन अभिनन्दन-पत्रोंके लिए आपको धन्यवाद देता हूँ। मैं देखता हूँ कि खद्दरसे सम्बन्धित मेरी गतिविधियोंका आप समर्थन करते हैं। जितना अधिक चरखे और खादीकी सम्भावनाओंके बारेमें मैं विचार करता हूँ उतना ही मेरा विश्वास दृढ़ होता जाता है कि हमारे देशमें फैले व्यापक संकटका यही एकमात्र हल है। और जैसा कि मैंने आज सुबह देखा, बूढ़े स्त्री-पुरुष एकके-बाद-एक आश्रममें आ रहे थे और बूढ़ी स्त्रियोंको रुई दी जा रही थी; यह देखकर मुझे लगा कि उनके समान लाखों अन्य स्त्री-पुरुषोंके लिए चरखेके सिवा कोई दूसरा पेशा न तो है, न हो सकता है। यदि हम अपने जीवनको सुखी मानकर उससे संतुष्ट रहते और भारतकी कंगालीका ध्यान करते तो हमारे लिए जीवन असह्य भार हो जाता। यदि कल्पना करें कि भारतकी आबादीके दसवें भागको केवल एक जन खाना नसीब होता है, वह सूखी रोटी और चुटकी-भर नमकपर जी रहा है, तब आप भारतमें फैली गरीबीका कुछ अन्दाज लगा सकेंगे। यह तसवीर, मेरी कोरी कल्पना नहीं है, बल्कि यह उन तथ्योंपर आधारित है जिन्हें भारतके पितामह दादाभाई नौरोजीने अपने अटूट प्रयत्नोंसे एकत्र किया था। उन्होंने ही सबसे पहले अंग्रेजी प्रशासकों द्वारा तैयार किये गये आँकड़े हमारे सामने रखे और इन आँकड़ोंसे हमें यह अहसास कराया कि भारत दिन-प्रतिदिन दरिद्र होता जा रहा है।

अब इस कष्टको दूर करनेका उपाय हमारे अपने हाथमें है। इस कष्टके लिए हम जिम्मेवार हैं। हमने वह कपड़ा पहनना छोड़ दिया जिसे हमारी अपनी लाखों बहनों द्वारा काते गये सूतसे हमारे अपने बुनकर तैयार करते थे। हमने मैनचेस्टर, और जापान और हालमें ही बम्बई तथा अहमदाबादकी मिलोंके बने कपड़ोंको अपनाया है। और ऐसा करते हुए हमने इस बातको जरा भी परवाह नहीं की कि हमारे अपने पड़ोसियोंपर क्या गुजरी है। हमने यह भी नहीं सोचा कि मिलके बने कपड़ेके उपयोगसे चाहे वह मिल कहींकी भी क्यों न हो, हम गरीब खेतिहर मजदूरोंको उस आयसे वंचित कर रहे हैं जो उन्हें अपने खाली समयमें काम करके मिलती थी। अपने इस अपराधके लिए हमें भारी हर्जाना भरना पड़ा है और अब भी हम उसे भर रहे हैं। किन्तु खुशकिस्मतीसे अब भी ज्यादा देर नहीं हुई। यदि हम अपने देशके स्त्री-पुरुषोंके कष्टोंके प्रति क्रूर और उदासीन होना छोड़ दें तो हम आज ही इसका उपाय कर सकते हैं और अपने देशसे गरीबी दूर कर सकते हैं।

१. तिरुच्चंगोड संघ, स्थानीय कांग्रेस कमेटी तथा वलीवा स्वराज्य संगमके सदस्यों द्वारा दिये गये अभिनन्दन-पत्रोंके उत्तरमें। डा० टी० एस० एस० राजन्ने भाषणका अनुवाद किया।