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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं दक्षिणके खद्दर केन्द्रोंमें गया हूँ। वहाँ मुझे बताया गया है कि यदि इस प्रदेशके लोग खद्दर खरीदकर लोगोंको संरक्षण दें या कहिये कि उनके प्रति अपना कर्तव्य पूरा करें तो इन हजारों स्त्री और पुरुषोंको दो चार पैसे और मिल जायेंगे। हर जगह वे लोग शिकायत करते हैं कि उन्हें बहुत-सी स्त्रियोंको जो रुई लेनके लिए उनके पास आती हैं, खाली हाथ वापस भेजना पड़ता है, क्योंकि वे उनके बनाये सारे खद्दरको बेच नहीं पाते। इसलिए मैं प्रत्येक स्त्री और पुरुषसे जो मेरी पुकार सुन सकते हैं, अपील करता हूँ कि आप जो मिलके कपड़े पहने हुए हैं, उन्हें जल्दी त्याग दें और खद्दर पहनें। उससे आपकी गरीब बहनों और भाइयोंको सहायता मिलेगी। आप अपनी मातृभूमिकी यही सबसे बड़ी सेवा कर सकते हैं। यदि आप केवल यहाँ बननेवाले खद्दरको पहनकर सन्तुष्ट रहेंगे तो आप देशकी सेवा करेंगे। महीन खद्दर बनाने लायक महीन सूत प्राप्त करनेके लिए तथा उस खद्दरको गरीब और अमीर सभीको मैनचेस्टरके कपड़ोंके बराबर ही सस्ते भावोंपर मुहैया करनेके लिए मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप प्रतिदिन आधा घंटा कातने में लगायें। यही उस समस्याका जिसमें हमारे देशके सर्वश्रेष्ठ लोग एक अरसेसे उलझे हुए हैं, बहुत ही सरल और निश्चित समाधान है। अब आप यह शिकायत नहीं कर सकते कि कताई सीखने और खद्दर प्राप्त करनेके लिए कोई साधन नहीं है। आप लोगोंके बीच एक आश्रम स्थापित कर दिया गया है। इस आश्रममें रहकर देशके कुछ सर्वोत्कृष्ट प्रतिभाशाली नवयुवक अपनी सारी शक्ति खद्दरके प्रचार और प्रसारमें लगा रहे हैं। आपको केवल वहाँ जाना होगा। आप वहाँ मुफ्त कताई सीख सकते हैं, अच्छे चरखे उपलब्ध कर सकते हैं और अपनी इच्छानुसार खद्दर आपको मिल सकता है।

यदि हमें अपने धर्मकी सेवा करनी है तो अस्पृश्यताका प्रश्न भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। मैं तो बार-बार कहूँगा कि अस्पृश्यता एक अभिशाप है। आज हम इसपर जिस रूपमें अमल करते हैं, उसके लिए हमारे शास्त्रोंमें कोई प्रमाण नहीं है। यह मानवीयता और विवेक दोनोंके प्रतिकूल है। ऐसा करना ईश्वरके अस्तित्वसे इनकार करना है। ईश्वरने मनुष्यको इसलिए नहीं बनाया कि वह दूसरे मनुष्यको अछूत समझे। मैं आपको किसी भी व्यक्तिके साथ खानेके लिए नहीं कहता। मैं आपसे यह नहीं कहता कि आप अपनी लड़कियोंका विवाह ऐसे व्यक्तियोंसे करें जो आपको इस योग्य नहीं लगते। किन्तु मैं आपसे यह जरूर कहूँगा कि आप किसी व्यक्तिके साथ केवल इसलिए अस्पृश्यताका व्यवहार न करें कि वह किसी एक खास जातिमें पैदा हुआ है। क्या ईश्वर किसीके मस्तकपर 'नीच' लिखकर जन्म देता है? जिस दिन वह ऐसा करेगा उस दिन वह ईश्वर नहीं रहेगा। आप आश्रममें जायें और आप उन पंचम बालकोंको देखें जिनका कि पालन-पोषण वहाँ हुआ है और मैं दावेके साथ कहता हूँ कि आप पंचम बालकों और ब्राह्मण या सवर्ण हिन्दू बालकोंके बीच भेद नहीं कर सकेंगे। थोड़ी-सी करुणा, थोड़ी-सी मानवता और प्रेमके स्पर्शने उन्हें आश्रममें रहनेवाले प्रत्येक व्यक्ति-जैसा बना दिया है। वे उसी प्रकार प्रतिभाशाली, शिष्ट और प्रिय हैं, जैसा कि आश्रममें रहनेवाला कोई दूसरा व्यक्ति। वे उसी प्रकार साफ