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जहाँ मद्यपान हो, वहाँ क्या करें?

सुथरे रहते हैं और ईश्वरसे डरते हैं जैसे कि आश्रमका सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण। इसलिए हम समयपर सचेत हों और अपना अहंकार छोड़कर हिन्दू धर्मको उस विपत्तिसे बचायें जो कि उसके सिरपर मंडरा रही है।

मद्यपान एक और समस्या है जिसे तुरन्त सुलझाना होगा। यह बहुतसे घरोंको नष्ट कर रही है और मुझे आशा है कि आपमें जो लोग देशभक्त हैं, जो अपनेको देशका सेवक समझते हैं, वे उन लोगोंके बीच जायेंगे जिन्हें कि पीनेकी लत है और उन्हें राहपर लानेकी कोशिश करेंगे। आप श्री रत्नसभापति गोंडरके शानदार उदाहरणका अनुकरण करें और मद्यपानके अभिशापसे नष्ट हो रहे देशको बचानेके लिए, वे जो-कुछ कर रहे हैं वही आप भी करें। जब कुछ ही मास पूर्व उनके चचेरे भाईने मेरे सामने यह पवित्र प्रतिज्ञा की कि वे शराबबन्दी तथा खद्दरके कार्यमें जीजानसे लग जायेंगे तो मुझे बहुत संतोष हुआ और खुशी भी। उनकी पत्नीको चरखा कातते हुए देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। उन्हें पैसेकी आवश्यकता नहीं है। वे अपने देशके लिए कताई करती हैं। मैं प्रत्येक स्त्री-पुरुषसे आजसे ही कातना शुरू कर देनेके लिए कहता हूँ।

पर मैं आपके अभिनन्दन-पत्रके लिए एक बार फिर आपको धन्यवाद देता हूँ और आशा करता हूँ कि जो-कुछ मैंने कहनेका साहस किया है आप उसे याद रखेंगे और इन तीन कामोंको करनेके लिए भरसक प्रयत्न करेंगे।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, २३-३-१९२५


१९५. जहाँ मद्यपान हो, वहाँ क्या करें?

एक भाईने दुःखित हृदयसे यह पूछा है:

उद्यान-भोजमें शराब दी गई थी, इसकी जानकारी मुझे नहीं है। किन्तु यदि मझे यह पता चल जाता कि उसमें शराब दी जायेगी, तो भी मैं उसमें जाता। जिस दिन यह उद्यान-भोज था उसी दिन मख्य दावत भी थी। इस दावतमें शराब दी गई थी; फिर भी मैं उसमें बैठा रहा। मुझे तो इन दोनोंमें से कुछ खाना ही नहीं था। दावतमें मेरे एक ओर एक महिला बैठी थी और दूसरी ओर एक भद्रपुरुष। महिलाके शराब लेनेके बाद बोतल मेरे पास आती और मैं उसे उक्त सज्जनको दे देता। उन सज्जनको बोतल देना मेरा कर्त्तव्य था। मैंने सोच-समझकर इस कर्त्तव्यका पालन किया। यह हो सकता था कि मैं इस बोतलको नहीं छू सकता, यों कहकर मैं उसे आगे न बढ़ाता, किन्तु ऐसा करना मैंने अनुचित समझा।

१. पत्र यहाँ उद्धृत नहीं किया गया है। इसमें राजकोटके ठाकुर साहब द्वारा १७ फरवरीको दिये गये एक उद्यान-भोजका जिक्र किया गया है। इसमें अतिथियोंको शराब दी गई थी।