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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हम स्वयं इतना नहीं सीख पाये हैं। हम अपनी ही इस अपूर्णताको दूर करें। क्योंकि वही हमारी सच्ची कठिनाई है। क्या सिखाना चाहिए, यह हमें मालूम हो गया है। किन्तु हममें उसे सिखानेकी योग्यता अभी नहीं आई है।

राष्ट्रीय शालाओंमें कितने विद्यार्थियोंके लिए कितने शिक्षक होने चाहिए इस सम्बन्धमें कोई नियम आज बनाना कठिन है। आदर्श शालाओंमें छात्र कम तो होंगे ही। इन शालाओंको बालकोंसे भरने में समय लगेगा। तबतक हम कोई निश्चित संख्या तय नहीं कर सकते।

हमारी मर्यादा

वही शिक्षक लिखता है:

यदि राजा लोग अपने शिक्षा विभाग हमें सौंपते हैं तो हमें उनको अवश्य हाथमें लेना चाहिए। पर उसके लिए हमारी शर्तें तो होंगी ही। खादी, सूत आदिके सम्बन्धमें हमारे नियम उन्हें स्वीकार होने चाहिए। जिस शिक्षा विभागमें अन्त्यजोंके प्रवेशपर रोक हो वह हमारे लिए अस्पृश्य ही होना चाहिए। यदि हम धीरे-धीरे सुधार कर पानेकी आशासे उन्हें हाथमें लेंगे तो हम उनमें ही खप जायेंगे। किसी कामको हाथमें लेनेके बाद उसे छोड़ना बहुत मुश्किल होता है। हम जिन नियमोंको आवश्यक मानते हैं उनके पालनके सम्बन्धमें हमें एक क्षण भी उदासीन नहीं रहना चाहिए।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २२-३-१९२५


१९८. पत्र: कुँवरजी खेतसीको

फाल्गुन वदी १३ [२२ मार्च, १९२५]

चि० कुँवरजी,

तुम्हारा पत्र मिल गया है। चि० रामीको तुम्हारे हाथमें सौंप देनेके बाद मैंने उसकी चिन्ता छोड़ दी है। तुमपर मुझे पूरा विश्वास है। रोग तो देहके साथ जुड़े हैं। वे तो आयेंगे और जायेंगे। तुम्हारे पत्रके बाद चि० बलीका पत्र मिला। उसमें रामीकी अवस्थामें सुधार होनेका समाचार था। रामीसे उसकी शक्तिके अनुसार काम लेना। इससे उसका शरीर ठीक रहेगा। मैं २७ तारीखको आश्रम पहुँचूँगा। रामीसे कहना कि वह मुझे पत्र लिखे।

बापूके आशीर्वाद

१. इसे उद्धृत नहीं किया जा रहा है।

२. गांधीजी वाइकोम, मद्रास अन्य स्थानोंका दौरा करके आश्रममें २७ मार्च, १९२५ को पहुँचे थे।

३. हरिलाल गांधीकी पुत्री।

४. हरिलाल गांधीकी साली।