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भाषण: 'हिन्दू' कार्यालयमें

खाते-पीते घरोंकी हैं, इसलिए १८ हाथकी साड़ियाँ पहनकर मजे में सामाजिक समारोहोंमें और इधर-उधर आ-जा सकती हैं। पर आप यह भी याद रखें कि गाँवोंमें रहनेवाली आपकी बहनोंकी साड़ियाँ तो क्या, पेट-भर भोजनतक नहीं मिलता। यह मैं आपसे बिलकुल सच कह रहा हूँ, मैंने खुद अपनी आँखोंसे ऐसी हजारों नहीं तो सैकड़ों बहनें तो देखी ही हैं, जो वस्त्रोंके अभावमें चिथड़ोंसे अपना तन ढकती हैं।

इसलिए मैं उन बहनोंके तथा धर्म और ईश्वरके नामपर आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप जिन विदेशी वस्त्रोंको काममें ला रही हैं उन्हें त्याग दें और खद्दरकी साड़ियाँ, जैसी भी मिल सकें पहनें। खद्दरको सस्ते दामोंमें सुलभ बनाने और अपनी पसन्द-लायक महीन साड़ियाँ प्राप्त करनेके लिए आप रोज कमसे-कम आधा घण्टा कताई करें और अपना कता हुआ सूत देशको दें। इससे खद्दर सस्ते दामोंमें सुलभ हो सकेगा। आप सबने पिछवाड़े के बड़े कमरे में बहनोंको सूत कातते देखा ही होगा। यदि न देखा हो, तो मैं अनुरोध करता हूँ कि आप दस-दसकी टोलियाँ बनाकर सूतकी कताई देखें। इसे अभी कोई बड़ा जमाना नहीं गुजरा है जब हमारे यहाँ हर घरमें जैसे आज चूल्हा रहता है वैसे ही एक चरखा भी रहता था। चरखेको अपने घरोंसे निकालकर हमने अपनी कमसे-कम एक चौथाई आमदनीका रास्ता बन्द कर लिया है। मैं फिर आपसे आग्रह करता हूँ कि आप चरखेको पुन: उचित स्थानपर प्रतिष्ठित करें। आपके यहाँ आनेसे मुझे बहुत खुशी हुई है। लेकिन यदि आप इन सभाओंमें विदेशी वस्त्र पहनकर रहीं तो वह मेरे लिए अत्यन्त पीड़ाजनक और असहनीय बन जायेगा। अपनी ही आवाज सुननेकी मेरी कोई इच्छा नहीं। मैं सभाओंमें आकर भाषण इसलिए करता हूँ कि मुझे अब भी यह आशा बनी हुई है कि मेरे कुछ शब्द तो श्रोताओंके हृदयोंमें उतर ही जायेंगे। ईश्वर करे, आज शाम यहाँ कहे गये मेरे शब्द आपके मनपर ऐसा ही प्रभाव डालें।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, २३-३-१९२५


२०२. भाषण : 'हिन्दू' कार्यालयमें

२२ मार्च, १९२५

अध्यक्ष महोदय और मित्रो,

मुझे जब इस चित्रका अनावरण करने के लिए आमन्त्रित किया गया था तब मैंने उत्तर देते हुए कहा था कि इसे मैं अपना सम्मान मानूँगा। अब मुझे दुहरा सम्मान महसूस हो रहा है। एक तो इसलिए कि आपने मुझे स्वर्गीय श्री कस्तूरी रंगा आयंगरके चित्रका अनावरण करने का सौभाग्य प्रदान किया है; और दूसरे इसलिए कि यह अनावरण मैं एक ऐसे व्यक्तिकी अध्यक्षतामें कर रहा हूँ जिसके प्रति मेरा

१. एस० कस्तूरी रंगा आयंगरके चित्रके अनावरणके अवसरपर वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीकी अध्यक्षतामें दिया गया।