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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रेमभाव है और जिनका मैं सम्मान करता हूँ। आमन्त्रणकर्त्ताओंने इस समारोहमें किसी दल विशेषको नहीं, बल्कि सभी दलोंको आमन्त्रित करके बहुत बुद्धिमानीका परिचय दिया है।

मेरा खयाल है कि श्री कस्तूरीरंगा आयंगरसे मेरा परिचय पहले-पहल १९१५ में हुआ था। मैं कह सकता हूँ कि उन दिनों मैं अखबार बहुत-कुछ नियमित रूपसे पढ़ता था। आज मैं उतने नियमसे नहीं पढ़ता (हँसी)। इन अखबारोंमें से एक 'हिन्दू' भी था; और उसका महत्व मैं तभीसे समझने लगा था। मैं मानता हूँ कि श्री कस्तूरीरंगा आयंगर भारतीय पत्रकारिताके कुछ श्रेष्ठ गुणोंके प्रतिनिधि थे। मैं जानता हूँ कि उनकी अपनी एक अलग ही शैली थी। उनकी व्यंगोक्तियाँ भी अपने ढंगकी अनूठी होती थीं। वे चाहे मित्रके रूप में लिखते, चाहे विरोधीके रूपमें---उनकी शैलीकी प्रशंसा सभीको करनी पड़ती थी। वे कभी-कभी अपने प्रतिपक्षियोंपर बड़े तीखे और सीधे प्रहार करते थे। ये प्रहार यद्यपि उनको उस समय कटु लगते थे; लेकिन उनमें सदा ही बहुत-कुछ सचाई दिखाई पड़ती थी, क्योंकि श्री आयंगरकी शैली अत्यधिक विवेकयुक्त लगती थी। मैं समझता हूँ कि उनके बारेमें बहुत-कुछ निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि अपने देशके प्रति उनकी आस्था अडिग थी। हालांकि उनकी आलोचना सदा ही विनम्रतापूर्ण रहती थी, फिर भी वे सरकारके अत्यन्त निर्भय आलोचक थे।

मुझे कई मौकोंपर उनसे मतभेद भी रखना पड़ता था पर मैं उनके निर्णयकी हमेशा कद्र करता था, क्योंकि उससे मैं इतना जरूर समझ जाता था कि मेरे तर्क या दृष्टिकोणमें कहाँ कमजोरी है। मुझे ऐसा कोई भी मौका याद नहीं आता जब उनकी दलीलमें कुछ-न-कुछ सार न रहा हो। और तुलना की जाये तो मैं कहूँगा कि अक्सर मुझे लगता था कि मद्रास अहातेमें उनका स्थान वही है जो इग्लैंडमें 'लन्दन टाइम्स' के सम्पादक का है। (तालियाँ) और बात ऐसी है कि मैंने श्री कस्तूरी रंगा आयंगरको निरा सुधारक तो कभी नहीं माना। उन्होंने पत्रकारिताका जो उद्देश्य समझा, उसकी सेवामें अपनी सारी प्रतिभा लगा दी। (हर्ष ध्वनि)। तदनुसार वे महसूस करते थे कि यदि उन्हें इसी रूपमें काम करना है, तो उनको देशके नेतृत्वकी, कमसे-कम हर मामले में नेतृत्व करनेकी कोशिश तो नहीं करनी चाहिए; उन्हें तो देशकी जनताकी रायको ही हमेशा सही रूपमें पेश करना चाहिए।

'हिन्दू' के नियमित पाठकोंने अवश्य ही महसूस किया होगा कि उन्हें जब भी उसकी सम्पादकीय नीतिमें कोई परिवर्तन हुआ दिखा, तो वह इसलिए हुआ कि देश किस तरफ जा रहा है, या हवाका क्या रुख है इसको रंगा अच्छी तरह पहचान पाते थे। लोग कह सकते हैं कि यह उनकी खामी थी, पर मैं इसे खामी नहीं मानता। (श्री सी० आर० रेड्डी द्वारा हर्षध्वनि)। अगर उन्होंने सुधारकका काम अपने ऊपर ले लिया होता, जैसा कि मैंने किया है, तो उनको जनताके सामने अपनी निजी राय रखनी पड़ती। फिर सारा देश उसके बारेमें भले ही कुछ भी क्यों न सोचता। मैं समझता है कि देशके जीवनमें एक दौर ऐसा भी आता है; लेकिन यह पत्रकारका खास काम नहीं है। पत्रकारका खास काम तो देशको जनताके मनोभावको समझना और उसे निश्चयात्मक शब्दोंमें निर्भयताके साथ व्यक्त करना ही है। और मेरा खयाल है कि जहाँ