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भाषण: 'हिन्दू' कार्यालयमें

तक इस गुणकी बात है, श्री कस्तूरी रंगा आयंगर अपना कोई सानी नहीं रखते थे (तालियाँ)।

इतना ही नहीं। मैंने 'हिन्दू' में एक और भी विशेषता देखी है। पूरा समाचार पानेके उत्सुक पाठक भी उसके समाचारोंसे संतुष्ट हो जाते हैं (हर्षध्वनि), क्योंकि श्री कस्तूरी रंगा आयंगर देशमें होनेवाली घटनाओंके विषयमें पाठकोंको जो-कुछ दिया जाना चाहिए, वह सभी कुछ दे देते थे। और उन्होंने काट-छाँटकी कला भी सीख ली थी। मैं अपने अनुभवसे कहता हूँ कि काट-छाँट करना भी एक कला है। उनके संक्षिप्त समाचार सचमुच प्रशंसनीय होते थे। और चूँकि उनकी रुचि अत्यन्त व्यापक थी, इसलिए 'हिन्दू' के पाठकोंको, जहाँतक संसारके समाचारोंका सम्बन्ध है, फिर कोई दूसरा अखबार पढ़नेकी जरूरत नहीं रहती थी। वे संसार-भरके समाचारपत्रोंको छान डालते, सभी पत्रों और पत्रिकाओंमें से सर्वोत्तम अंशोंके उद्धरण लेते और उनको अपने पाठकोंके सामने आकर्षक ढंगसे पेश कर देते थे। इसलिए यदि मद्रास अहातेमें रहनेवाला कोई भी मनुष्य 'हिन्दू'को पढ़ लेता और उसके जवाबमें निकलनेवाले 'मद्रास मेल' को भी देख लेता तो फिर उसे किसी भी प्रश्नके दोनों पहलुओंकी पूरी जानकारी मिल जाती। मेरी समझसे तो श्री कस्तूरी रंगा आयंगरकी पत्रकारिताकी सारी विशेषता इसीमें आ जाती है। और यह कहने के बाद मुझे लगता है कि में उनकी पत्रकारिताकी जितनी प्रशंसा कर सकता था, उतनी मैंने कर दी है।

मैं 'हिन्दू' को उन गिने-चुने समाचारपत्रों--उन थोड़ेसे दैनिक पत्रों--में गिनता हैं जिसके बिना सचमुच काम नहीं चल सकता; (तालियाँ) अतः श्री कस्तूरी रंगाकी मृत्युसे जो उसकी क्षति हुई है, वह दक्षिण भारतमें ही नहीं उत्तर भारतमें भी अनुभव की जायेगी। क्योंकि मद्रास अहातेमें तो पत्रोंके पाठकोंपर श्री कस्तूरी रंगाका प्रभाव अनुपम था ही तथापि समस्त भारतके सार्वजनिक कार्यकर्त्ताओंपर भी उनका प्रभाव कुछ कम नहीं था। वे हमेशा यह जानना चाहते थे कि किसी भी प्रश्न-विशेषके बारेमें 'हिन्दू' का मत क्या है। इसलिए मुझे जेलमें यह जानकर बड़ा सदमा पहुँचा कि श्री कस्तूरी रंगा आयंगर अब नहीं है। मैं सदा अनुभव करता था कि उचित सार्वजनिक अवसर मिले तो मैं उसमें सार्वजनिक रूपसे अपना दुःख प्रकट करूँ। इसलिए मुझे बहुत प्रसन्नता है कि मुझे एक ऐसे व्यक्तिके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करनेका गौरव दिया गया है जिसका मैं अत्यधिक सम्मान करता था। यद्यपि उनसे बहुत बार मेरा मतभेद हो जाता था और वे कर्त्तव्यभावसे जब भी जरूरत पड़ती थी अपना मतभेद प्रकट करने में जरा भी हिचक नहीं दिखाते थे। उनको जब भी लगता था कि देशके हितकी दृष्टिसे उनके लिए अपना विनार जोरदार शब्दोंमें व्यक्त करना जरूरी हो गया है, और उसके बिना कोई चारा नहीं है, तब वे व्यक्तियों और उनकी भावनाओंको अपने आड़े नहीं आने देते थे। ऐसे थे श्री कस्तूरी रंगा आयंगर।

मैं आपको बतला चुका हूँ कि इधर कई वर्षोंसे मैं अखबारोंको नियमित रूपसे नहीं पढ़ पाता। पर मैंने सुना है कि 'हिन्दू' के वर्तमान सम्पादक और श्री कस्तूरी रंगा आयंगरके सुपुत्र अपने प्रख्यात प्रधान सम्पादककी नीति और परम्पराओंका ही सावधानीसे अनुगमन कर रहे हैं। आशा है कि 'हिन्दू' फले-फूलेगा और ठीक उसी