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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रकार देशकी सेवा करता रहेगा जिस प्रकार श्री आयंगरके सम्पादकत्वमें लम्बे अर्सेसे करता आ रहा है। लोकमतको व्यक्त और प्रचारित करने में पत्रकारिताका एक अपना विशिष्ट स्थान है। हम अभी अपने देशमें पत्रकारिताकी सर्वोत्तम परम्पराएँ बना रहे हैं या कहना चाहिए कि हमें अभी बनानी हैं। हमारे यहाँ कई अत्यन्त सुयोग्य पत्रकार हैं। हम उनका अनुसरण कर सकते हैं। हमारे देशमें बहुत पहले क्रिस्टोदास पाल जैसे देशभक्त भी हो चुके हैं। जिन दिनों निर्भयताके साथ अपने विचार व्यक्त करना या लिखना बहुत ही कठिन था, उन दिनों उन्होंने लोकमतका नेतृत्व किया था और उन्होंने खुद जो भी महसूस किया तथा देशने जो-कुछ कहा उसे व्यक्त करनेमें कभी कोई हिचक नहीं दिखाई थी। इसलिए हमारे सामने इतनी श्रेष्ठ परम्पराएँ है, जिनका हमें अनुसरण करना है। फिर भी मुझे पत्रकारिताका जो-थोड़ा-बहुत अनुभव है उसके आधारपर मैं खयाल करता हूँ कि अभी हमें बहुत-कुछ करना है। मैं जानता हूँ कि हम अपने ध्येयकी ओर जैसे-जैसे आगे बढ़ते जायेंगे, पत्रकारिता हमारे देशके भाग्यके निर्माणमें तैसे-तैसे अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती जायेगी।

मैं इसीलिए अपने परिचित पत्रकारोंसे हर अवसरपर यही बात कहता रहता हूँ कि अपने स्वार्थ साधन करने या केवल अपने जीविकोपार्जन करने या उससे भी बुरी बात धन-संचय करने के लिए पत्रकारिताका दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए। पत्रकारिता देशके लिए तभी उपयोगी और कारगर होगी और अपना उचित स्थान प्राप्त करेगी जब वह निःस्वार्थ भावसे चलाई जायेगी, जब उसकी अधिकांश शक्ति सम्पादकों या स्वयं पत्र-पत्रिकाओंपर आनेवाली किसी भी विपत्तिका विचार किये बिना देशकी सेवामें लगेगी और जब सम्पादक परिणामोंकी परवाह छोड़कर देशकी जनताके विचारोंको व्यक्त करेंगे। मैं समझता हूँ कि हमारे देशमें इस तरहकी पत्रकारिता पनप रही है। 'हिन्दू' भी उन चन्द समाचारपत्रोंमें से एक है, जो इसे अंजाम दे सकते है। उसने अपनी एक विशेष प्रतिष्ठा बना ली है। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि 'हिन्दू' के वर्तमान प्रबन्धक और सम्पादक अपनी सर्वोत्तम परम्पराओंका अनुसरण करते रहेंगे और यहाँ मैं यह भी कह दूँ कि अपनी विरासतको और शानदार बनानेका तरीका उसे ज्योंकी-त्यों बनाये रखना नहीं, बल्कि उसे अधिक समृद्ध बनाना है।

मेरा खयाल है कि इजाफा करनेकी, नये विचारोंकी हमेशा गुंजाइश रहती है और इसीलिए मुझे उम्मीद रखनी चाहिए कि सम्पादक मण्डल इस बातको स्वीकार करेगा कि भारतमें तेजीसे पाठकोंका एक नया वर्ग ऐसा पैदा हो रहा है जो बिलकुल ही भिन्न प्रकारके विचार, कार्य और कदाचित् समाचार भी चाहता है। यह नया वर्ग जनतामें से खड़ा हुआ है। आपको शायद मेरी बातपर विश्वास हो जायेगा। मैंने देश-भरमें घूम-घूमकर खुद देखा है कि भारतकी जनतामें अधिक अच्छी व्यवस्थाके लिए एक स्पष्ट आकांक्षा पैदा हो गई है। वह अपने लिए एक अधिक अच्छी व्यवस्था चाहती है। पत्रकार अभीतक भारतकी महान् जनताकी सेवा नहीं कर पाये हैं; अतः यदि वे उसके हृदयमें सचमुच बैठना चाहते हैं---तो उन्हें एक बिलकुल

१. (१८३४-१८८४); प्रमुख राजनीतिज्ञ; हिन्दू पैट्रियटके सम्पादक।