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भाषण: मद्रासकी सार्वजनिक सभामें

दूसरा ही मार्ग ढूँढ़ना होगा, दूसरी ही नीति अपनानी होगी। आप मुझसे यह उम्मीद तो अवश्य ही नहीं करेंगे कि मैं यह भी बताऊँ कि वह नीति क्या होनी चाहिए। अगर इसका निर्णय मुझपर छोड़ दिया जाये तो आप जानते ही हैं कि वह नीति क्या होगी या क्या होनी चाहिए। मैं इन विचारोंको सिर्फ आपपर छोड़ता हूँ।

मैं इन शब्दोंके साथ सम्पादक महोदय और श्री कस्तूरी रंगा आयंगरके सुपुत्रोंको इस विशिष्ट सम्मानके लिए एक बार फिर धन्यवाद देता हूँ, विशिष्ट इसलिए कि मुझे इस चित्रका अनावरण करनेका सौभाग्य मिला। (जोरसे देरतक तालियाँ)।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, २३-३-१९२५

२०३. भाषण : मद्रासकी सार्वजनिक सभामें[१]

२२ मार्च, १९२५

सभापति महोदय और मित्रो,

जिन महानुभावों और संस्थाओंने मुझे ये अभिनन्दन-पत्र दिये हैं, मैं उन सभीका आभारी हूँ। सभापति महोदय,[२] आपने हिन्दू-मुसलमान एकताके प्रश्नकी चर्चा कुछ विस्तारसे की है। मैं आपके द्वारा व्यक्त किये गये भावोंकी पुष्टि करता हूँ। अगर हिन्दू और मुसलमान समझदारीके साथ अपने बीच स्वयं एकता कायम नहीं करेंगे तो उनको ऐसा मजबूरन करना होगा, क्योंकि कोई भी एक दल इस देशका नेतृत्व नहीं कर सकता। जबतक देशमें थोड़ेसे भी हिन्दू और मुसलमान ऐसे हैं जो सभी जातियोंकी एकतामें सर्वोपरि आस्था रखते हैं, तबतक मुझे पूरी आशा है कि हम सबमें एकता, हार्दिक एकता होगी। कांग्रेसको समाजसेवी संस्था या कताई-संस्था माना जाये तो मुझे खुद अपनी तरफसे इसमें कोई आपत्ति नहीं है, क्योंकि यदि हम सामाजिक और आर्थिक कहे जानेवाले मसलोंकी उपेक्षा करेंगे तो कोई भी यह देख ले सकता है कि स्वराज्य हासिल करना नामुमकिन है। लेकिन साथ ही कांग्रेस एक राजनीतिक संस्था भी है, क्योंकि स्वराज्य दल कांग्रेस संगठनका एक अविभाज्य अंग है; और कांग्रेस राजनीतिक महत्वाकांक्षाकी पूर्तिकी इच्छा रखनेवाले प्रत्येक कांग्रेसीको स्वराज्य दलके जरिये उसकी चरम पूर्तिका अवसर देती है। लेकिन जहाँतक मेरा सवाल है, कमसे-कम फिलहाल मेरी राजनीति चरखसे आगे नहीं जाती। उसका चक्र इतनी तेजीसे और ऐसे निश्चित भावसे घूमता है कि उसकी गतिमें अन्य सभी गतिविधियाँ आ जाती हैं। चरखेका काम सभी जातियों के बीच एकता स्थापित करने और अस्पृश्यत निवारणके कामके साथ मिलकर एक ऐसी आधारशिला प्रस्तुत कर देता है जिसपर

१. यह भाषण गुजराती सेवक मन्दिर, अमरवाला विलासिनी सभा और तिलक घाट (ट्रिप्लीकेन बीच) स्थित नौरोजी-गोखले संघ द्वारा दिये गये अभिननन्दन-पत्रोंके उत्तर में दिया गया था।

२. याकूब हसन।