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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आप किसी भी राजनीतिक या राष्ट्रीय भवनका निर्माण कर सकते हैं। अस्पृश्यता-निवारणके बिना तो आप जिस भवनका भी निर्माण करेंगे, वह रेतपर बने मकानकी तरह ढह जायेगा। इसलिए आपका ध्यान कछ देरतक वाइकोम सत्याग्रहकी ओर आकर्षित करनेके लिए मुझे कोई सफाई देनेकी जरूरत नहीं रह जाती।

आपमें से जो लोग अखबार पढ़ते है, उन्होंने शायद मेरे त्रावणकोरके दौरेके बारेमें सब-कुछ पढ़ा होगा। मुझे पूरी-पूरी उम्मीद है कि कट्टरपन्थी हिन्दुओंके पूर्वग्रहकी दीवार सुदृढ़ और संगठित लोकमतके आगे ढह जायेगी। मेरी अपनी राय यह है कि त्रावणकोर-सरकार सुधारके खिलाफ नहीं है। अस्पृश्यता एक ऐसा अभिशाप है जिसे शीघ्रसे-शीघ्र दूर करना हर हिन्दूका कर्त्तव्य है। मैंने अस्पृश्यताका बुरेसे-बुरा स्वरूप देखा है। अन्त्यजोंका सवर्णों के पास आना ही नहीं, उनकी निगाहके सामने आना भी अनुचित माना जाता है। धर्मान्ध लोग, कुछ लोगोंको देखनातक पाप समझते हैं नयाडी लोगोंके लिए तो यह आवश्यक होता है कि वे सवर्णोंकी नजरके सामने भी न आयें। मैंने त्रिचूरमें इस जातिके दो मनुष्य देखे थे जिनकी देह तो मनुष्यकी थी और फिर भी वे मनुष्य नहीं थे। (हँसी) भाइयो, यह हँसनेकी बात नहीं, बल्कि खूनके आँसू बहानेकी बात है। आँखोंके नामपर वहाँ मात्र दो गड्ढे थे। अगर उनके साथ मानवीयताका बर्ताव किया जाता तो उनके आँखें हो सकती थीं। आप लोगोंकी आँखोंमें जैसी चमक दिखाई देती है, वैसी चमक उनकी आँखोंमें नहीं थी। उनको आकर मुझे मानपत्र भेंट करने थे। लेकिन उनको गाड़ीतक हाथोंमें उठाकर लाना पड़ा था और वे अपने कांपते हुए हाथोंसे मानपत्र पकड़े हुए थे। मैंने उनको चेतन करनेकी और उनके चेहरोंपर थोड़ी खुशी लानेकी कोशिश की। लेकिन मैं कतई कामयाब नहीं हो सका। वे मानपत्रोंको मुझे पकड़ा नहीं पाये। मुझे स्वयं आगे बढ़कर उनके हाथोंसे उन्हें लेना पड़ा। फिर उन लोगोंको, जैसे वे लाये गये थे वैसे ही, उठाकर वापस ले जाना पड़ा। अगर हममें पर्याप्त विचारशक्ति हो और अगर हमारे दिलोंमें अपने देश या धर्मके लिए पर्याप्त प्रेम हो, तो हम जबतक देशको इस अभिशापसे मुक्त नहीं कर लेते तबतक चैनसे न बैठें। यदि कोई मुझसे कहे कि शास्त्रोंमें किसी ऐसी बुराईका समर्थन है तो मुझे ऐसे शास्त्रोंकी जरूरत नहीं, लेकिन जिस प्रकार सभामें हमारी उपस्थितिकी बात निश्चित है उसी प्रकार मैं निश्चित रूपसे जानता हूँ कि शास्त्रोंमें ऐसी किसी पैशाचिकताका प्रतिपादन या आदेश नहीं है। यह कहना कि जन्मके कारण कोई भी मनुष्य अस्पृश्य, अनुपगम्य या अदर्शनीय हो जाता है, ईश्वरकी सत्ता माननेसे इन्कार करना है। मैं इसीलिए आपसे कहता हूँ कि त्रावणकोरके सत्याग्नही जो साहसिक संघर्ष चला रहे हैं, आप सार्वजनिक सभाओं और अन्य सभी वैध तरीकोंके जरिये लोकमत जगाकर उसका समर्थन करें। मैं पंजाबसे कन्याकुमारीतक और असमसे सिन्धतकके हिन्दुओंको इस एक बातपर एकमत कर सकूँ तो अवश्य करूँगा।

अभी-अभी एक सज्जनने मुझे एक पर्चेंमें इस विषयमें कुछ प्रश्न लिखकर भेजे हैं।

मैं बड़ी खुशीसे उनके उत्तर देता हूँ। उन्होंने पूछा है कि यदि अछूतोंको सड़कोंका इस्तेमाल करनेकी इजाजत दे दी जाये तो क्या आप उसके बाद सभी हिन्दुओं