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भाषण: मद्रासकी सार्वजनिक सभामें

की तरह हिन्दू मन्दिरोंमें प्रवेशको उनकी माँगका समर्थन करेंगे? मुझे तो इस समय इस प्रश्नके पूछे जानेपर आश्चर्य हो रहा है। मैं इसके उत्तरमें जोर देकर कहता हूँ--हाँ। मैं तो कहता हूँ कि अछूतोंके लिए सब सार्वजनिक सड़कें ही नहीं खुली होनी चाहिए, बल्कि ब्राह्मणोंके लिए खुले सब मन्दिर भी उनके लिए खुले रहने चाहिए; और वे सभी सार्वजनिक स्कूल, जिनमें अब्राह्मण और अन्य लोगोंके बच्चे दाखिल किये जाते हैं और सभी सार्वजनिक स्थान, जैसे कुएँ या यात्रियोंके बंगले या आम लोगोंके लिए अन्य सभी स्थान अछूतोंके लिए भी उसी तरह खुले रहने चाहिए जैसे कि हम सबके लिए खुले रहते हैं। जबतक ईश्वरकी धरतीके इस खण्डपर यह एक सीधा-सा और बुनियादी मानवीय अधिकार हर मनुष्यके लिए सुनिश्चित नहीं बना दिया जाता तबतक मैं समझता हूँ कि अस्पृश्यताके बारेमें मेरी माँग अपूर्ण ही है। यह जितना अछूतोंका अपना हक है, उससे ज्यादा हम सवर्ण हिन्दुओंका उनके प्रति कर्त्तव्य है। अस्पृश्यों और समस्त संसारके प्रति हमने जो पाप किये हैं उनका यह कमसे-कम प्रायश्चित्त है। किन्तु आप मेरी बातका अर्थ गलत न लगाएँ। मैं इस अधिकारको सत्याग्रहके बलपर इसी समय प्राप्त करना नहीं चाहता। वाइकोम सत्याग्रह तो अस्पृश्योंके लिए खास-खास सड़कोंके खुलते ही बन्द हो जायेगा। मैं महसूस करता हूँ कि मन्दिरोंके प्रश्नपर हमारे खिलाफ पूर्वग्रहकी एक भारी और ठोस दीवार खड़ी हुई है, हालाँकि यह अनुचित है। यह बुराई हिन्दू जातिको सत्वहीन बनाती जा रही है, फिर भी मैं इसका उन्मूलन करनेके लिए किसी भी रूपमें हिंसाका प्रयोग करनेके पक्षमें नहीं हूँ। लेकिन यह बात भी बिलकुल निश्चित है कि जबतक अछूतोंके लिए यह पूरा अधिकार सुनिश्चित नहीं कर दिया जाता और जबतक अस्पृश्य और अदर्शनीय शब्द ही कोषसे नहीं निकाल दिये जाते, तबतक प्रत्येक हिन्दूका कर्त्तव्य है कि वह दम न ले।

इस भाईने दूसरे प्रश्नमें मुझसे पूछा है कि सनातनी हिन्दूकी परिभाषा क्या है; और क्या सनातनी हिन्दू ब्राह्मण किसी माँसाहारी अब्राह्मण हिन्दूके साथ बैठकर भोजन कर सकता है? मेरी परिभाषाके अनुसार सनातनी हिन्दू वह है जो हिन्दू धर्मके मूलभूत सिद्धान्तोंमें विश्वास करे और हिन्दू धर्मके मूलभूत सिद्धान्त हैं-- सत्य और अहिंसामें पूर्ण आस्था। 'उपनिषदों' ने कहा है और 'महाभारत' ने ऊँचे स्वरमें घोषित किया है कि "यदि तुम अपने सारे राजसूय और अश्वमेघ यज्ञोंको और अपने सारे सुकृतोंको तराजूके एक पलड़े में और सत्यको दूसरे पलड़ेमें रखो तो सत्यका पलड़ा भारी बैठेगा।" इसलिए जो भी चीज सत्य रूपी निहाईपर रखी जाने और अहिंसारूपी धनसे पीटी जानेपर टूट जाये और उस कसौटीपर खरी न उतरे, उसे अहिन्दू मानकर त्याग दो। इस भाईको और इसी प्रकारकी शंकाएँ रखनेवाले दूसरे भाइयोंको सनातनी हिन्दूकी अधिक विस्तृत परिभाषाके लिए 'यंग इंडिया' के पृष्ठ देखने चाहिए। मैंने बार-बार कहा है कि अन्तर्जातीय भोजों और अन्तर्जातीय विवाहोंका अस्पृश्यतानिवारणसे कोई सम्बन्ध नहीं है, क्योंकि अन्तर्जातीय भोज या विवाह तो अपनीअपनी पसन्दकी बात है और हर मनुष्यको उसे इसी रूपमें लेना भी चाहिए। यह

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