पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/४००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३७०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तो विलास या रुचिकी तृप्ति है; परन्तु अस्पृश्यताका मतलब तो अपने भाइयोंकी सेवासे पराङ्मुख होना है; जबकि सत्य और अहिंसाकी अपेक्षा है कि कोई भी मनुष्य किसी भी दूसरे मनुष्यको, चाहे वह कैसा ही पापी हो, अपनी सेवासे वंचित न करे।

इस भाईने वर्णाश्रम धर्मके बारेमें मेरे विचार पूछे हैं। मैं चार वर्णों और चार आश्रमोंमें विश्वास करता हूँ। हमने इन चारों वर्णोंकी व्यवस्थाको बिगाड़ दिया है और उनको उचित रूपमें न मानकर एकको दूसरेसे ऊँचा मान लिया है। हमने अपने तीन आश्रम तो बिलकुल समाप्त कर दिये हैं और चौथा गृहस्थाश्रम, बस नाम-मात्रका ही रह गया है। हमारी गिरावट और दुर्दशाका कारण यही है। ऋषियोंने हिन्दू धर्ममें अनुशासन और संयम लानेके लिए मनुष्यके जीवनको इन चार अवस्थाओंमें या आश्रमोंमें बाँटा था। गृहस्थाश्रम बहुत वर्षोंके ब्रह्मचर्य-पालनका पूर्ण परिपाक है। हमारी आदत-सी बन गई है कि हम छोटी-छोटी बातोंको लेकर बेचैन हो जाते हैं और बड़ीबड़ी बुराइयोंको पचा जाते हैं। ब्रह्मचर्य आश्रमसे ही हिन्दू-धर्मको स्थिरता मिली है। यहाँतक कि वह युगोंसे चला आता है। अनेक सभ्यताएँ समाप्त हो गई हैं, किन्तु वह अबतक सुरक्षित है। अगर हम वानप्रस्थ और संन्यास दो अन्य आश्रमोंको भी पुनर्जीवित करते, अपना पूरा समय और मन राष्ट्रकी सेवामें लगाते और पूरे तौरपर राष्ट्रीय कार्यकर्त्ता बन जाते तो हमें यह विडम्बना न देखनी पड़ती, हमारा इतना पतन न होता और न हमारे सम्मुख बाल-विवाहों और बाल-विधवाओंके दुःखद प्रसंग ही आते। हम वर्णाश्रम धर्मका पालन केवल उनके सही अर्थोंमें करें तो हम इतने कापुरुष न रहें। तब हम केवल ईश्वरका ही भय मानेंगे और किसी भी मनुष्यसे कभी न डरेंगे। आज हम एक-दूसरेसे डरते हैं, मुसलमानोंसे डरते हैं और अंग्रेजोंसे भी डरते हैं। हमने पूर्वजोंसे जो पौरुष पाया था, वह अब हममें नहीं रहा है और अब हम हाड़-माँसके पुतले-मात्र रह गये हैं।

उक्त भाईने आखिरी प्रश्न, जो असल में पहला ही प्रश्न है, यह पूछा है कि "विधान परिषदोंके आगामी चुनावोंमें मतदाताओंका क्या कर्तव्य है? क्या मतदान न करनेकी सलाह देते हैं?" यह तो आसमानसे धरतीपर आ गिरने जैसा है। यदि मैं मतदाता होऊँ और इस अधिकारका प्रयोग करूँ तो मैं क्या करूँगा--यह मैं आपको बताता हूँ। मैं सबसे पहले उम्मीदवारोंकी भली-भाँति जाँच-पड़ताल करूँगा और यदि देखूँगा कि कोई भी उम्मीदवार सिरसे पैरतक खद्दर नहीं पहने है तो मैं किसीको भी मत न दूँगा; मतदान पत्रको हिफाजतसे अपनी जेबमें ही रखे रहूँगा। किन्तु यदि मुझे यह इत्मीनान हो जायेगा कि उनमें से कमसे-कम एक सज्जन ऊपरसे नीचेतक खद्दरधारी हैं तो मैं उनके पास जाकर उनसे पूरी विनम्रतासे पूछूँगा कि उन्होंने इसी अवसरके लिए खद्दर पहन रखा है या वे आदतन घर और बाहर सर्वत्र हाथकता और हाथबुना खद्दर पहनते हैं। अगर उनका उत्तर 'नहीं' में होगा तो भी मैं अपना मतदान पत्र जेबमें ही रखे रहूँगा। उनसे मैं फिर यह कहूँगा, "आप सदा खद्दर पहनते हैं, यह तो बहुत ही अच्छी बात है। लेकिन क्या आप जनताके लिए रोजाना कमसे-कम आधा घंटा कताई करते हैं?" उनके उत्तरसे बिलकुल पूर्ण