आपके अधिकार आपको मिलना उतना ही निश्चित है, जितना रातके बाद दिनका होना। विद्यार्थियोंको जीवनके अन्य पहलुओंकी अपेक्षा इस पहलूपर अधिक ध्यान देना चाहिए। मैं देशभरमें विद्यार्थियोंसे यही अनुरोध करता आ रहा हूँ कि वे स्कूलों और कालेजोंमें कुछ भी करें, पर यह बात हमेशा याद रखें कि वे देशके चने हए प्रतिनिधि हैं, और स्कूल-कालेजोंमें पढ़नेवाले विद्यार्थी देशके युवक समाजका एक बहुत ही छोटा-सा अंश हैं और वर्तमान शिक्षा-व्यवस्थाके कारण हमारे देहातोंके लोग विद्यार्थी समाजके सम्पर्कमें बिलकुल ही नहीं आते। जबतक शिक्षाकी स्थिति ऐसी बनी रहेगी, तबतक मेरा विश्वास है कि विद्यार्थियोंका यही कर्त्तव्य बना रहेगा कि वे जनताके दिमागको समझें और जनताकी सेवा करें। जनताकी सेवा करने और उसके लिए अपने-आपको तैयार करने के लिए आपको क्या करना चाहिए--इस सिलसिले में मैं आपको एक बड़ी सुन्दर बात सुनाता हूँ। यह बात श्री सी० एफ० एन्ड्रयूजने शान्तिनिकेतनके विद्यार्थियोंके बारेमें 'यंग इंडिया' के लिए लिखी थी।
महात्माजीने इस बातको सुनाते हुए बतलाया कि शान्तिनिकेतन आश्रमके कुछ छात्र जनताको सेवा करने के लिए पासके कुछ गाँवोंमें गये थे। लेकिन वे वहाँ सरपरस्तोंके रूपमें गये थे, सेवकोंके रूपमें नहीं। गाँवोंके लोगोंने उनकी बातोंके प्रति उत्साह नहीं दिखाया, इसलिए उन्हें शुरूमें तो निराशा हुई। उन्होंने गाँवोंके लोगोंसे कुछ काम करने के लिए कहा था; किन्तु जब वे दूसरे दिन यह पता लगाने गये कि कितना काम हो चुका है तब उन्हें मालूम हुआ कि काम बिलकुल ही नहीं किया गया है। लेकिन छात्र जब खुद फावड़े और कुदाल लेकर काममें जुट पड़े, तब उन्होंने तुरन्त फर्क देखा। महात्माजीने आगे बताया कि छात्रोंने कैसे उन देहातोंमें चरखे चालू करवाये और गाँवोंके लोगोंने फिर कैसे उनके साथ हर सेवा-कार्यमें हाथ बँटाया। इसके बाद उन्होंने भारत सेवक समाजके डा० देवका उल्लेख किया। उनको चिकित्सा सम्बन्धी सेवाकार्य के लिए चम्पारनके पासके कुछ गाँवोंमें भेजा गया था। महात्माजी उन दिनों स्वयं भी वहाँ ग्रामीण जनताको कुछ शिकायतें दूर करानेके लिए कार्य कर रहे थे। उन्होंने बताया कि डा० देव गाँवोंकी सफाई व्यवस्था और गन्दगी तथा रोग दूर करनेसे सम्बन्धित कुछ सुधार करके आदर्श गाँव तैयार करने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने आगे बताया कि डा० देवने कैसे गाँवोंकी जनताका सहयोग प्राप्त किया और कैसे खुद कुओंकी सफाई करके और घरोंकी गन्दगी दूर करके उन्हें सफाईके सिद्धान्तोंका पालन करना सिखाया। डा० देव और उनके सहयोगियोंको गाँवोंके लोगोंसे इस प्रकारके सेवाकार्यों में तत्परतापूर्ण सहयोग मिला और गाँवोंके लोग शर्मिन्दा होकर डा० देव और उनके साथियोंकी सहायता करने के लिए ही नहीं निकल पड़े, बल्कि यह भी जानना चाहा कि वे उन कामोंको खुद कैसे कर सकते हैं।
महात्माजीने छात्रोंको इन शब्दों में समाज सेवाकी तैयारी करनेका उपदेश दिया:
आपकी वास्तविक शिक्षा तो स्कूल-कालेज छोड़नेके बाद ही शुरू होती है। आप दिन-प्रतिदिन कक्षाओंमें कुछ बातें सीखते हैं; लेकिन उनको अमल में लाना भी तो