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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आपको सीखना चाहिए। अक्सर होता यह है कि आपने वहाँ जो भी कुछ सीखा है वह आपको भुलाना पड़ता है, जैसे कि वे गलत-सलत अर्थशास्त्रीय विचार जो आपके दिमागोंमें ठूँसे गये हैं और इतिहासके झूठे तथ्य पढ़ाये गये हैं। इसलिए आपको अपनी अवलोकन-शक्तिका उपयोग करना है और उनकी तहमें जाकर असलियत समझनी है। राष्ट्र-सेवा और आपकी शिक्षाकी आधार-शिला शैक्सपियर, मिल्टन और अंग्रेजीके अन्य कवियों या कालिदास, भवभूति या अन्य संस्कृत कवियोंके अध्ययनपर नहीं रखी जा सकती। वह आधार-शिला तो सूत कातने और खद्दर बुननेपर ही रखी जा सकती है। मैं यह क्यों कहता हूँ? इसलिए कि आपको करोड़ों लोगोंके बीच काम करना है और आपको खेतीमें एक दानेकी जगह दो दाने पैदा करवाने हैं। यदि आप देशकी सम्पदा और उसके उत्पादनमें वृद्धि करना चाहते हैं तो विश्वास करें कि उसका एकमात्र उपाय चरखा ही है। कालिदास या रवीन्द्रनाथ ठाकुरकी कृतियाँ उच्च वर्गोंमें ही पढ़ी जाती हैं। मैं बंगालके जीवनसे परिचित हूँ और कह सकता हूँ कि वहाँ ये केवल उच्च वर्गोंमें ही पढ़ी जाती हैं। और सबसे बड़ी समस्या यही है कि उच्च वर्गों और जनसाधारणके बीच कड़ी कैसे कायम की जाये? गुजरात विद्यापीठमें हजारों विद्यार्थी हैं। उनके कल्याणका दायित्व मुझपर भी माना जाता है। मेरे लिए यह एक जटिल समस्या है। लेकिन मेरा खयाल है कि विद्यार्थियोंका वास्तविक कार्य उन बड़े-बड़े शहरोंमें नहीं है जहाँ वे शिक्षा पाते हैं, बल्कि गाँवोंमें है, जहाँ उन्हें अपनी शिक्षा समाप्त करके जाना चाहिए और अपनी शिक्षा द्वारा उपलब्ध सन्देशको वहाँ पहुँचाना चाहिए, जिससे गाँववालोंके साथ एक जीवन्त सम्पर्क स्थापित किया जा सके। मैं ऐसे किसी भी व्यक्तिकी बात नहीं मान सकता जो कहता है कि यह सम्पर्क उनकी अपनी शर्तोंपर ही स्थापित किया जा सकता है। गाँवोंके लोग रूखी-सूखी रोटी-भर चाहते हैं, वे एक व्यवस्थित ढंगका काम चाहते हैं, ऐसा काम जिसे वे खेतीके कामोंसे बचे हुए समयमें कर सकें, क्योंकि खेतीका काम बारहों महीने नहीं चलता। दोस्तो, आप अगर अपने जीवनके मुख्य कार्यके बारेमें गम्भीरतासे सोचें तो आप उसकी आधार-शिला इसी विचारपर रखें। मुझे भरोसा है कि आप ऐसा ही करेंगे (तुमुल हर्षध्वनि)।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, २३-३-१९२५