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२०५. भाषण: मद्रासके मजदूरोंकी सभामें[१]

२२ मार्च, १९२५

मित्रो और साथी मजदूरो,

मैं आपके मानपत्रके लिए आपको धन्यवाद देता हूँ। मैं मद्रास साहित्य अकादमीके मानपत्रके लिए भी आभार प्रकट करता हूँ। आपको साथी मजदूर कहनेसे मेरा तात्पर्य यह है कि मैं भी अपने-आपको मजदूर मानता हूँ। मुझे अपने आपको कुतैया, बुनकर, किसान और भंगी कहने में गर्वका अनभव होता है। मेरे जैसे मनष्यके लिए जहाँतक सम्भव है, वहाँतक मैंने अपना भाग्य आपके साथ जोड़ दिया है। मैंने ऐसा इसलिए किया है कि मेरा विश्वास है, भारतकी मुक्ति आपके जरिये ही होगी। मैंने ऐसा इसलिए भी किया है कि मैं महसूस करता हूँ कि भारतकी मुक्ति श्रम अर्थात् हाथ-पैरोंकी मेहनतके बलपर ही हो सकती है, किताबें पढ़नेसे या दिमागी कसरत करनेसे नहीं। मैंने महसूस किया है और दिन-प्रतिदिन अधिकाधिक महसूस करता जा रहा हूँ कि मनुष्य शारीरिक श्रमसे ही अपनी शरीर-रक्षा करनेके लिए पैदा हुआ है। कतैयों, बुनकरों और अन्य मजदूरोंसे मैं जब मिलता हूँ तब उनसे यही कहता हूँ कि वे शारीरिक श्रम कभी बन्द न करें, बल्कि उसके साथ अपना बौद्धिक विकास भी करें। लेकिन मैं जानता हूँ कि श्रममें जो सुख मुझे मिलता है वह आपको नसीब नहीं है। आपमें से अधिकांशके लिए श्रम कष्टप्रद और सुखहीन है। श्रमके कष्टप्रद और सुखहीन होनेका आंशिक कारण यह है कि धनिक लोग आपके श्रमका शोषण करते हैं; लेकिन उसका मुख्य कारण यह है कि स्वयं आपमें कुछ दोष और त्रुटियाँ हैं। मेरे श्रमिक बननेका तीसरा कारण यह है कि मैं आपके ही घरातलपर रहता हुआ आपके दोषों और आपकी त्रुटियोंकी ओर आपका ध्यान आकर्षित कर सकूँ। आप जानते हैं कि मैं अहमदाबादमें व्यवहारतः हजारों मजदूरोंके साथ रह रहा हूँ। मुझे उनके रहन-सहनकी पूरी जानकारी है और मेरा खयाल है कि आप उनसे अधिक भिन्न नहीं हैं। वहाँ मैंने देखा है कि ये मजदूर, और शायद आप भी, शराब पीनेके आदी हैं। आपमें से अधिकतर लोग जुएमें अपना रुपया गँवा देते हैं। आप अपने पड़ोसीके साथ शान्तिसे नहीं रहते, बल्कि परस्पर झगड़ा करते रहते हैं। आप लोग एक-दूसरेसे जलते हैं। अक्सर आप अपना काम ईमानदारीसे पूरा नहीं करते। अकसर आप ऐसे लोगोंको अपना नेता बना लेते हैं, जो आपको सही रास्तेपर नहीं चलाते और मैं जानता हूँ कि वे आपके साथ किये जानेवाले हर अन्यायसे अधीर हो जाते हैं। आप लोग कभी-कभी सोचते हैं कि आप हिंसाका आश्रय लेकर उस अन्यायको मिटा सकते हैं। आपमें से जो भी लोग पंचम नहीं हैं, वे पंचम

१. सभामें चूलै कांग्रेस और मद्रास साहित्य अकादमीकी ओरसे मानपत्र भेंट किए गए थे। श्री एम० एस० सुब्रह्मण्यम् अय्यर गांधीजीके इस भाषणका तमिल भाषामें वाक्यशः अनुवाद करते गये थे।