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२११. पत्र: एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडियाको

२४ मार्च, १९२५

उपरोक्त पत्र-व्यवहार[१]प्रकाशनार्थ देते हुए मेरे लिए इतना बतला देना जरूरी है कि इसमें जो समझौता दिया गया है उससे वाइकोमका वर्तमान आन्दोलन एक कदम आगे बढ़ा है। बाड़ हटाये जाने और प्रतिबन्धक आदेश वापस लिये जाने के बावजूद सत्याग्रहियोंके सीमा-रेखा पार न करनेसे एक ओर जहाँ यह प्रकट होता है कि यह संघर्ष पूर्णत: अहिंसात्मक है वहाँ दूसरी ओर उससे सरकारके इस कथनकी सचाई सिद्ध होती है कि सत्याग्रही जिस सुधारके लिए संघर्ष कर रहे हैं वह उसके पक्षमें है। मुझे आशा है कि सुधारके विरोधी सत्याग्रहियोंके इस सद्भाव-संकेतका वैसा ही सद्भावपूर्ण उत्तर देंगे।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, २४-३-१९२५

२१२. भाषण: मद्रासमें[२]

२४ मार्च, १९२५

मित्रो,

मैं आपका आभारी हूँ कि आपने मुझे यहाँ अपने बीच आनेका निमन्त्रण दिया। मैं मानपत्रके लिए भी आपका आभारी हूँ। मैं आपकी भावनाओंको समझता और उनकी कद्र करता हूँ; और इस कारण और भी अधिक कि आप चाहे आज न मानें, पर किसी दिन अवश्य ही मानेंगे कि मैं जितनी बड़ी सहकारी समितिका संचालन कर रहा हूँ, उतनी बड़ी दूसरी सहकारी समिति संसारमें आजतक नहीं बनी है। हो सकता है कि मेरा यह प्रयोग बुरी तरह असफल हो और यदि ऐसा होगा तो वह आपकी कमजोरी या सहयोगके अभावके कारण होगा। मैं आज एक ऐसी सहकारी समिति चला रहा हूँ जिसके तीस करोड़ लोग स्वेच्छासे सदस्य बन सकते हैं। इस देशके तीस करोड़ स्त्री, पुरुष और बच्चे, कोढ़ी और स्वस्थ सभी इसके सदस्य बन सकते हैं---कोढ़ी वे जो मन, शरीर और आत्मासे कोढ़ी हैं और स्वस्थ वे जो शरीरसे भले चंगे हैं। इस तरह आप देखेंगे कि यह संस्था कमसे-कम अपने क्षेत्रमें तो आपके इस सर्वप्रचलित सिद्धान्तमें अमल करनेकी कोशिश कर रही है कि प्रत्येक व्यक्ति समाजके लिए

१. देखिए. "पत्र: डब्ल्यू० एच० पिटको", १८-३-१९२५ और "तार: डब्ल्यू० एच० पिटको", २४-३-१९२५।

२. बिंग स्ट्रीटस्थित ट्रिप्लिकेन नागरिक सहकारी समिति द्वारा दिये गये मानपत्रके उत्तरमें।{{dhr|5em}