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भाषण: मद्रासकी आयुर्वेदिक फार्मेसीमें

और समाजके सभी लोग प्रत्येक व्यक्तिके लिए जीवित रहेंगे। यदि आप इस सिद्धान्तका मूल्य आँकनेका सचमुच उद्योग करें तो आप उस सत्यके छुपे आशयको और चरखेके गहन और गूढ़ अर्थको समझ जायेंगे। इसीलिए मैं आप सब सहकारी सदस्योंको संसारकी इस सबसे बड़ी सहकारी समितिमें शामिल होनेका निमन्त्रण देता हूँ। आप ऐसा तबतक नहीं कर सकते जबतक आप रोजाना कमसे-कम आधा घंटा कताई करनेका निश्चय न कर लें और खद्दर पहननेका व्रत न ले लें।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, २४-३-१९२५

२१३. भाषण: मद्रासकी आयुर्वेदिक फार्मेसीमें

२४ मार्च, १९२५

महात्माजीने मानपत्रका उत्तर देते हुए कहा कि आप समारोहके आयोजकोंने शायद यह महसूस नहीं किया कि यहाँ मेरी उपस्थिति बिलकुल ही अटपटी जान पड़ रही है। आप नहीं जानते कि मैंने एक मेडिकल कालेजके,[१] जिससे मेरे सम्माननीय मित्र हकीम अजमल खाँ सम्बद्ध हैं, उद्घाटन समारोहके अवसरपर भी यही बात कही थी। उस समय मैंने अध्यक्षके रूपमें बोलते हुए यह कहा था कि आजकल यूनानी, आयुर्वेदिक या यूरोपीय चिकित्सा पद्धतियोंके नामसे जो-कुछ प्रचलित है उसकी अधिकांश बातोंसे मैं सहमत नहीं हूँ। मैं दवाओंके अन्धाधुन्ध उपयोगका विरोधी हूँ। मुझे यह सुनकर कोई खुशी नहीं होती कि डा० श्री रामचारलु दो लाख या बीस लाख लोगोंको अपनी दवाएँ देते हैं। मैं उनको मकरध्वजके प्रचारमें इतनी सफलता पानपर बधाई नहीं दे सकता। हमारे चिकित्सकोंमें थोड़ी-सी सच्ची विनम्रताकी ही जरूरत है। यह मेरा सौभाग्य ही है कि एलोपैथिक, आयुर्वेदिक और यूनानी--तीनों प्रकारके चिकित्सकोंमें मेरे अनेक मित्र है; परन्तु वे सभी मेरे इस विचारको भलीभाँति जानते हैं कि जिस प्रकार वे दवाइयाँ देते हैं, मैं उसका समर्थन कदापि नहीं कर सकता।

मैं चाहता हूँ कि आजके सभी चिकित्सक पुराने जमाने के चिकित्सकोंकी तरह अपना सारा जीवन अनुसन्धान-कार्यमें लगायें और बिना एक कौड़ी भी लिये लोगोंको बीमारियोंसे राहत दें। परन्तु आज ऐसा नहीं होता, यह दुःखजनक है। आज जो कुछ दिखाई देता है वह तो यह है कि वैद्य लोग आयुर्वेदके प्राचीन गौरवका गुण-गान करके जीविकोपार्जनका प्रयत्न कर रहे हैं। उनकी रोग-निदान पद्धति आज भी बिलकुल पुराने ढंगकी है और जो पाश्चात्य पद्धतिकी रोग निदान-पद्धतिके सामने बिलकुल

१. दिल्लीका तिब्बिया कालेज।