पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/४१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३८४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं ठहर सकती। पाश्चात्य पद्धतिके बारेमें और जो भी कहा जाये --मैंने इस विषयके बारेमें बहुत-कुछ कहा भी है---परन्तु उसके पक्षमें एक बात तो कहनी ही पड़ेगी कि उसमें विनम्रता और अनुसन्धानकी भावना है और ऐसे अनेक चिकित्सक और शल्य-चिकित्सक हैं जिन्होंने अपना सारा जीवन इसी काममें लगा दिया है और जिन्हें संसार जानता तक नहीं है। मैं चाहता हूँ कि हमारे वैद्य भी ऐसी ही भावनासे अनुप्राणित हों। परन्तु दुर्भाग्यसे आज देखने में यह आता है कि वे पैसे और प्रसिद्धिके भूखे हैं और शिखरपर पहुँचने के लिए व्यग्र हैं। इस ढंगसे तो वे आयुर्वेदकी सेवा नहीं कर पायेंगे। मैं जानता हूँ कि आयुर्वेदमें बहुत ही कारगर और प्रभावकारी दवाएँ मौजूद हैं। लेकिन वैद्य लोग आजकल उस विद्याको भुला बैठे हैं, अतः वास्तवमें उनका उपयोग नहीं जानते। मैंने इसके बारेमें अनेक वैद्योंसे चर्चा की है और उन्होंने, मैं जो भी कहता आया है, उस सबका समर्थन किया है।

यह सत्य मेरे मनमें गहराईसे जमा हुआ है। अगर मैं इसे व्यक्त न करूँ तो आप मुझे अपना मित्र नहीं कहेंगे क्योंकि आपने मुझे इसीलिए तो यहाँ आनेका निमन्त्रण दिया है। मेरा यह विचार एक दिनका अथवा उतावलीसे सोचा हुआ नहीं है। बल्कि यह मेरे लगभग चालीस वर्षोंके अवलोकन और स्वास्थ्य तथा स्वच्छता सम्बन्धी प्रयोग और परीक्षणोंका फल है। इनके फलस्वरूप मैं इस निश्चित निष्कर्षपर पहुँचा हूँ कि श्रेष्ठ चिकित्सक वही है जो कमसे-कम दवाएँ देता है। स्वर्गीय सम्राट् एडवर्डकी शल्यचिकित्सा इतनी सफलतापूर्वक सम्पन्न करनेवाले शल्य-चिकित्सकने औषध-विज्ञान सम्बन्धी अपनी पुस्तिकामें लिखा है कि वे केवल दो-तीन औषधियोंका ही इस्तेमाल करते थे और शेष काम प्रकृतिपर छोड़ देते थे। मुझे विश्वास है कि हमारे वैद्य इस रहस्यको समझते हैं कि प्रकृति कोमलतासे सबसे जल्दी और सबसे अच्छा स्वास्थ्य लाभ करा सकती है। लेकिन मुझे दिखाई तो यह पड़ता है कि मनुष्यके निकृष्टतम विकारोंको उत्तेजित करनेवाले तरह-तरहके प्रयोग-परीक्षण किये जा रहे हैं। दवाओंके जो इश्तिहार निकलते हैं, उन्हें देखकर मेरे मनमें बहुत ग्लानि होती है। मुझे लगता है कि वैद्य मानव जातिको कोई भी सेवा नहीं कर रहे हैं, उलटे वे तो हर औषधिको हर रोगके लिए रामबाण बताकर बहुत बड़ा अहित कर रहे हैं। मैं चाहता हूँ कि वैद्य विनम्रता, सरलता और सच्चाईको अपनायें।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, २४-३-१९२५