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२१४. भाषण: शराबबन्दीके बारेमें[१]

२४ मार्च, १९२५

यह मेरे लिए बड़ी खुशीकी बात है कि मुझे आज आपसे शराबबन्दीके बारेमें कुछ कहनेका मौका मिला है और यह मेरे लिए अत्यन्त सम्मानकी बात भी है; क्योंकि मैं जिनकी अध्यक्षतामें बोल रहा हूँ उनकी लम्बी, महान् और अनवरत देश-सेवाके कारण मेरे मनमें उनके प्रति बड़ी श्रद्धा है। शराबबन्दीके सवालको हाथमें लिये आज मुझे ज्यादा नहीं तो ३० वर्ष जरूर ही हो गये हैं। मुझे मद्यके प्रति घोर अरुचि अपनी माँसे मिली थी और वह तब मिली थी जब उन्होंने मुझे इंग्लैंड जानेकी अनुमति दी थी। आपमें से कुछ लोग शायद जानते हों कि उन्होंने मुझसे तीन प्रतिज्ञाएँ कराई थीं। इनमें से एक यह थी कि मैं मद्यपानसे बचता रहूँगा। मैं आपको बता दें कि वे यह नहीं जानती थीं कि मद्यपानकी बुराई कितना बड़ा अभिशाप है। उन्हें यह मालूम न था कि जनसाधारणकी दशा कैसी है और शराब पीनेकी बुराईसे उनके घरोंमें कैसी तबाही आ रही है। उस सुन्दर और छोटे-से नगर राजकोटमें जहाँ मैं पला-पुसा और पढ़ा-लिखा था, जिस वक्तकी बात आज मैं आपसे कर रहा हूँ, उस वक्त शराब बहुत कम पी जाती थी। फिर भी मैं अपनी माँको दिये वचनके कारण स्वभावतः सावधान हो गया और मैंने साथ ही यह भी सोचा कि अन्य चीजोंका निषेध करनेके बजाय उन्होंने मुझसे केवल इन्हीं तीन चीजोंसे बचनेका वचन क्यों लिया। मैं रवाना हुआ, और जहाजमें मेरा बहुतसे लोगोंसे मिलना-जुलना हुआ। मैं बिलकुल निकम्मा आदमी था और अपने सहयात्रियोंसे ज्यादा देरतक अंग्रेजीमें बात नहीं कर सकता था। उनमें से एक यात्री काठियावाड़के कच्छ जिलेका रहनेवाला था। उसने मुझसे कहा, बिस्केकी खाड़ी पार करने के बाद तो आपको शराब पीनी ही पड़ेगी। मैंने कहा कि अच्छी बात है, तब देखूँगा। उसने मुझसे पूछा, अगर डाक्टर शराब पीनेकी सलाह दें तो आप क्या करेंगे। मैंने कहा, अगर मेरे जीवित रहनेकी वही एक शर्त हो तो अपनी माँको खूब सोच-समझकर दिये गये इस पवित्र वचनको तोड़नकी अपेक्षा मैं मर जाना पसन्द करूँगा। मैं लन्दन पहुँचा। बड़ी-बड़ी ऊँची और शानदार इमारतोंमें जो सार्वजनिक शराबखाने हैं, जो-कुछ होता था उस सबको मैं अपनी आँखोंसे देखता था; मैं जिस शराबखानेके सामने खड़ा होता, वहीं देखता कि लोग बिलकुल होश-हवासमें अन्दर जाते हैं और नशे में चूर होकर बाहर आते हैं। इंग्लैंडमें मेरे लिए काम करनेकी कोई गुंजाइश ही नहीं थी। इस सबको देखकर हर किसीकी यही प्रबल इच्छा हो सकती है कि मद्य-निषेधका काम किया जाये और भारतीयोंको इस अभिशापसे बचाया जाये। मैं आपको यह भी बता दूँ कि मैं जिस वक्त लन्दन गया, वह ऐसा वक्त था जब

१. मद्रासके गोखले हालमें आयोजित मध-निषेध कार्यकर्त्ताओंकी सभामें, जिसकी अध्यक्षता श्रीमती बेसेंटने की थी।

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