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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कुछ विद्यार्थी और शिक्षक पश्चिमकी हर चीजके पीछे आँख मूँदकर पड़े हुए थे और इसलिए शराब पीते थे और शराब पीना फैशन मानते थे। अत: जब मैंने लन्दनमें यह स्थिति देखी तब अनुभव किया कि मुझे अपने देशके नौजवानोंसे शराब पीनेकी लत छुड़ानेके लिए काम करना चाहिए। उस समय मुझे क्या पता था कि मुझे भारत लौटनेपर दो वर्षके भीतर ही दक्षिण आफ्रिका जाना पड़ेगा और अपने देशके कुछ ऐसे लोगोंके बीच रहना पड़ेगा जो बहुत ही गरीब हैं। ये सभी लोग शराब पीते थे, इतना ही नहीं बल्कि हृदसे ज्यादा शराब पीते थे। लेकिन इसे आप मेरा सौभाग्य कहें या दुर्भाग्य, मैंने नेटालके सैकड़ों लाचार गिरमिटिया औरतों और आदमियोंको शराबकी लतसे बरबाद होते देखा। उस समय मैं असहयोगी नहीं था, हालाँकि मैं दक्षिण आफ्रिकाके विभिन्न इलाकोंमें सरकारसे लड़ रहा था। जहाँ कहीं वह मेरा सहयोग स्वीकार करती थी वहाँ मैं उससे बहुत विनम्रताके साथ पूरी तरह सहयोग भी करता था। मैंने सरकारको इस बातके लिए राजी करनेकी कोशिश की थी कि वह भारतीयोंके लिए शराब पीना निषिद्ध कर दे। आपको यह जानकर दुःख और आश्चर्य होगा कि इसमें मुझे अपने ही देशवासियोंके विरोधका सामना करना पड़ा। उन्होंने अपने सामान्य और विशेष स्वत्वोंका प्रश्न खड़ा किया और कहा कि जब यूरोपीय लोग बे-रोकटोक शराब पी सकते हैं तब भारतीयोंको भी वैसा करनेका अधिकार होना चाहिए। (हँसी) यह बात मानना मेरे लिए सम्भव न था। मैं स्वीकार करता हूँ और इस बातपर शमिन्दा हूँ कि २० सालतक दक्षिण आफ्रिकामें रहने के बाद भी में उनमें से अधिकांशको इस बातका विश्वास नहीं करा सका कि यह सवाल ऐसा है जिसमें स्वत्व और स्पर्धाकी बात ही नहीं उठती। अगर मेरे पास समय होता तो मैं आपको शराबके नशे में बुरी तरह धुत जहाजी कप्तानोंका वर्णन करके सुनाता। इनकी अधीनतामें यात्रा करना सचमुच खतरनाक था। इसलिए नहीं कि वे ज्यादा शराब पी लेते थे, बल्कि इसलिए कि वे अपनी सुध-बुध खो बैठते थे। कुछ कप्तान मेरे मित्र बन गये थे, लेकिन जब उन्होंने बेतहाशा पीना शुरू कर दिया तब मैंने देखा कि उनके लिए मद्यपान कितना बड़ा अभिशाप सिद्ध हुआ था। पूरी तरहसे उनकी जिम्मेदारीपर यात्रा करनेवाले जन समुदायको उनसे कितना बड़ा खतरा था। मैंने अपने मित्रोंसे कहा कि इसमें अधिकारकी कोई बात नहीं है, और अगर हम कमसे-कम अपने लिए कानूनी तौरपर मद्य-निषेध करा सकें तो इससे हम इन तमाम परिवारोंको बरबादीसे बचा सकते हैं; और तभीसे मेरे और मेरा विरोध करनेवाले मित्रोंके बीच इस बातमें मतभेद चला आता है कि शराब पीनेपर कानूनी प्रतिबन्ध रहे या घर-घर जाकर लोगोंको शराब पीना छोड़नेके लिए समझाया जाये।

मैं निश्चित रूपसे इस निष्कर्षपर पहुँचा हूँ कि जन-साधारणमें केवल प्रचार करनेसे काम न चलेगा, क्योंकि वे जानते ही नहीं कि वे कर क्या रहे हैं। आपको मालूम ही है कि मैं इस अहातेमें काठियावाड़की यात्रा करके आ रहा हूँ। काठियावाड़में बहुत-सी छोटी-छोटी रियासतें हैं। इन्हींमें से एक रियासतमें कुछ लोगोंको शराबकी बुरी लत थी। उनके परिवारवालोंने मुझसे अनुरोध किया कि मैं उन्हें उनकी इस