बुरी लतसे बचाऊँ। किन्तु जबतक दवाको छोड़कर बाकी कामोंके लिए शराबपर पूरा प्रतिबन्ध न लगाया जाये, तबतक मैं उनको उनकी इस लतसे कैसे बचा सकता हूँ? मैं शराबके बारे में भी ठीक उसी नुस्खेको लागू करना चाहता हूँ जिसे अमेरिकामें कुछ अफीम निषेध संस्थाएँ अफीमके बारेमें लागू कर रही हैं। मैं नहीं जानता कि अफीमकी बुराई ज्यादा बड़ी है अथवा शराबकी बुराई। शायद दोनों बराबरकी हों, लेकिन शुद्ध नैतिक दृष्टिसे मेरा खयाल ऐसा होता है कि अगर मुझे इस बारेमें निश्चित मत देना ही पड़े तो मैं शराबके खिलाफ मत दूँगा, क्योंकि शराब आदमीके नैतिक आधारको खोखला कर देती है। मैं ऐसे हजारों लोगोंको जानता हूँ जो अपनेको सीमाके अन्दर रहकर पीनेवाला तो समझते हैं, लेकिन उन्होंने अपनी शराब की लतको संयत रखना नहीं सीखा है। मेरे ऐसे जिगरी दोस्त हैं जिन्हें नशेमें पत्नी, माँ और बहनमें कोई अन्तर नहीं दिखाई पड़ता, और होशमें आनेके बाद भी वे यह नहीं समझ पाते कि शराब पीना कितनी बड़ी बुराई है, और वे बार-बार शराबकी ओर दौड़ते हैं। मुझे एक आस्ट्रेलियावासी अंग्रेज मित्रकी बात याद आती है। वे प्रति मास ४० पौंड कमाते थे। यह खासी आय थी। वे अच्छे इंजीनियर थे, और महोदया! मैं यह भी बता दूँ कि वे एक निष्ठावान् थियोसॉफिस्ट थे, क्योंकि वे सचमुच ही उस बुराईसे मुक्त होना चाहते थे। उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मुझे इसका कोई उपाय मालूम है। इसका कारण यह था कि वे इस सम्बन्धमें मेरी वृत्तिको जानते थे। उनको मालूम था कि मैं आहार-शास्त्री हूँ, आहारके विषयमें सुधारोंका हामी हूँ और इस दिशामें कुछ प्रयोग कर चुका हूँ। अतः हम दोनों उस छोटी-सी थियोसॉफिकल मण्डलीके जरिये मित्र बन गये। यह मण्डली मुझे अपनी बैठकोंमें भाग लेनेके लिए अक्सर बुलाती थी। मेरे उन मित्रका नाम पैटर्सन था। मैं नहीं जानता कि आज वे क्या करते हैं। उन्हें कठिन संघर्ष करना पड़ा। जबतक वे मेरे मकानमें मेरे साथ रहे, तबतक उन्होंने अपने आपपर संयम रखा। लेकिन मुझसे अलग होनेके कुछ ही दिन बाद मुझे उनका एक पत्र मिला था। उन्होंने उसमें लिखा था कि "मैं जहाँ था, वहीं वापस पहुँच गया हूँ।" शराब आदमीको इस हदतक गुलाम बना लेती है। वैसा ही अफीम भी करती है। वह हमें मूढ़ और जड़ बनाती है। लेकिन शराब हमें उत्तेजित करती है, इस हदतक कि हम भगवान्की गोदमें से हटकर शैतानकी गोदमें जा पड़ते हैं।
इसलिए मुझे लगता है कि अगर विधायकोंको अफीम और शराबसे प्राप्त होनेवाले राजस्वको छोड़नेके लिए राजी किया जा सके तो मैं आज ही वैसा करूँ। अगर इस राजस्वके बिना हम अपने बच्चोंको शिक्षा भी न दे सकें तो मैं देशके सभी बच्चोंकी शिक्षातक का बलिदान करनेके लिए तैयार हैं। लेकिन आज मैं आपसे इस राजस्वके बारेमें, जिसे हम अपने अभागे देशभाइयोंसे प्राप्त कर रहे हैं, बात नहीं करना चाहता। अच्छा यह होगा कि मैं आपको अपने कुछ अनुभव सुनाऊँ और बताऊँ कि जनताके बीच काम करना किस तरह सम्भव है, क्योंकि कानून बनाना हम सभीके हाथमें नहीं है। यह तो विधायकोंके हाथमें है और सरकारके हाथमें है। लेकिन घरघर जाना और थोड़ी बहुत सान्त्वना देना तो हम सबके हाथमें है। मैंने यह बात अनु-