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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भवसे जानी है कि उपदेश देनेसे कुछ मतलब हल नहीं होगा। हमें शराबियोंके घरोंमें जाकर उनके जीवन-क्रमका अध्ययन करना चाहिए। महोदया, मैं आपके इस कथनका पूरा समर्थन करता हूँ किन्तु हम जबतक इस समस्याके कारणोंकी जाँच नहीं करेंगे, तबतक उसका कोई हल नहीं निकल सकता। हमारे देशवासी, बल्कि मैं कहूँ तो दुनिया-भरके लोग जो शराब पीते हैं, महज पीनके लिए ही नहीं पीते। जिन्होंने शराब पी है या चखी है, उन्होंने मुझे बताया है कि उसका स्वाद बहुत अच्छा नहीं होता। उसमें कोई बहुत बढ़िया जायका नहीं होता, अलबत्ता सौ साल या दो सौ साल पुरानी शराबमें कोई बढ़िया जायका होता हो तो भले होता हो। लेकिन करोड़ों लोग वैसी शराब नहीं पीते और न पी ही सकते हैं। मेरा तो खयाल है कि यह जायका कृत्रिम होता है। मैं तो मामूली किस्मोंकी शराबकी ही बात कर रहा हूँ। शराबी लोगोंने मुझे बताया है कि वे शराब खास तौरसे बादमें होनेवाले असरके खयालसे पीते हैं--इसलिए पीतें हैं कि उन्हें उसके बाद एक अर्ध चेतनाकी अवस्था प्राप्त होती है, वे क क्षणिक सुखका अनुभव करते हैं और उसमें भूल जाते हैं कि वे कौन हैं और कहाँ हैं। शायद हम सभी, जीवनमें किसी न किसी अवसरपर अपने आपको भुला देना चाहते हैं। हम कुछ ऐसे सुख बता सकते हैं जो वस्तुतः सुख नहीं, बल्कि दुःख है; मैं तो इससे भी कड़ी भाषाका प्रयोग करके कहनेवाला था कि वे यम-यातनाएँ हैं। इसलिए यदि हम शराबबन्दीका काम करना चाहते हैं तो हमें अपने इन देशबन्धुओंके घरोंमें जाना चाहिए; हमें अपने आपको ऊँचा नहीं समझना चाहिए और उन्हें नफरतसे नहीं देखना चाहिए और हमें महज इसीलिए अपने आपको देवदूत, स्वर्गका देवता नहीं मान लेना चाहिए कि हम शराब नहीं पीते और वे पीते हैं। उनके यहाँ जब हम जायें तब हमें अपने मनमें यह सोचना चाहिए कि वे जो-कुछ करते हैं, क्या हम भी बिलकुल वही न करते। क्या आप जानते हैं कि बम्बईमें मजदूर लोग क्या करते हैं? वे ऐसी सन्दूकनुमा तंग खोलियोंमें रहते हैं, जिन्हें घर कहना भी ठीक नहीं। उनमें ताजी हवा नहीं पहुँचती। एक खोलीमें एक-एक नहीं, बल्कि कईकई परिवार रहते हैं, क्योंकि ये अभागे मजदूर किरायेदार अक्सर, और कई बार कानूनके। ठाफ अपनी खोलियोंमें कई और किरायेदार रख लेते हैं। वे ऐसा इसलिए करते हैं कि वे अपनी सब कमाई शराबमें उड़ा देते हैं, और उन्हें अपने भूखसे पीड़ित बच्चोंको भी खिलाना-पिलाना होता है। वे उन बच्चोंकी खातिर, अपनी खोलियोंमें दूसरे किरायेदार बसा लेते हैं, इतना ही नहीं, बल्कि जुआ खेलते हैं और हर तरहके बुरे काम भी करते हैं।

वे शराब क्यों पीते हैं? उन रोगोत्पादक गन्दी कोठरियोंमें रहते हुए उनका दम घुटता है। आप उनकी इन कोठरियोंमें नहीं जाते। वे कारखानोंमें ८ या १० घंटे काम करते हैं। वहाँ उन्हें मुकद्दम लोग काम करनेके लिए निरन्तर कोंचते रहते हैं। किन्तु आप तो वहाँ जाते ही नहीं सो आप यह नहीं जान सकते कि उनकी कोठरियाँ एकसे-एक गन्दी होती हैं। आप इन परिस्थितियोंमें काम नहीं करते। जब आपको अच्छा और साफ चावल न मिले, आटा सड़ा-गला और दुर्गन्धयुक्त मिले और बच्चोंके लिए भी दूध न मिल सके, तब आप उनकी हालत समझेंगे। बम्बईके कुछ रईससे-रईस लोग भी