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सम्पूर्ण गांधी वाड़्मय

सिखाऊँगा। यह तो मेरे मन की बात हुई। परिषद् समाप्त होने के बाद मुझे उनका मेहमान रहना था। परिषद्के दूसरे ही दिन मैंने उन्हें आधा घंटा कातना सिखाया। उस आधे घंटेमें ही उन्होंने पूनीमें से तार निकालना सीख लिया। दूसरे दिन उन्होंने दो घंटेमें ८ नंबरका ४८ गज खासा अच्छा सूत काता और तीसरे दिन एक घंटेमें २७ गज काता। इन दोनों दिनों नहाकर सूत कात लेनेके बाद ही उन्होंने भोजन किया। यदि अन्य प्रतिष्ठित अधिकारी और राजवंशी-गण इसी प्रकार सूत कातकर उदाहरण उपस्थित करें, तो देशके गरीब लोगोंके ऊपर बड़ी अच्छी छाप पड़ेगी और वे उद्यमी बन जायेंगे। मुझे आशा है कि पट्टणी साहबकी प्रतिज्ञा सर्वाशमें सफल होगी।

मुझे यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि वे कांग्रेस या काठियावाड़ राजनीतिक परिषद्के सदस्य नहीं बनेंगे। वे बनें, यह मेरी माँग भी नहीं थी और न इच्छा ही थी। मेरी दृष्टि से कातनेका राजनीतिसे सम्बन्ध है। किन्तु उस सम्बन्धकी बात सोचे बिना भी काता जा सकता है। कातनेमें गरीबके प्रति जो दयाकी भावना है, जो धार्मिक भावना है और उसके पीछे जो आर्थिक दृष्टि है वह तो सभीको स्वीकार्य होने योग्य वस्तु है। मैं तो चाहता हूँ कि लॉर्ड रीडिंग भी कातें। यदि राजनीतिका खयाल किये बिना राजा और प्रजा दोनों सूत कातने और खादी पहनने लग जायें, तो मैं भलीभाँति जानता हूँ कि हिन्दुस्तानका उद्धार अपने आप हो जायेगा। यह ऐसा काम है कि जिसमें सभी निस्संकोच भाग ले सकते हैं और हिन्दुस्तानको थोड़ी-बहुत सेवा भी कर सकते हैं।

कपासकी उगाही

परिषद् जैसे ही समाप्त हुई, वैसे ही भाई देवचन्द पारेख, भाई मणिलाल कोठारी, भाई बरजोरजी, भरूचा वगैरा इस विचारसे कपास उगाहनेके लिए निकल पड़े कि गरीबोंको कपास देकर उनसे उनके आधे घंटेका श्रम प्राप्त किया जा सके। भावनगर छोड़नेके पहले ही उन्होंने लगभग २७५ मन कपास इकट्ठी कर ली। उम्मीद है कि केवल काठियावाड़के ही दानसे लगभग २,००० मन कपास मिल जायेगी। मैं आशा करता हूँ कि कपास इकट्ठा करनेका यह काम उत्साहपूर्वक किया जायेगा और जो कपास देनेकी स्थितिमें हैं, वे उसे देने में बिलकुल आगा-पीछा नहीं करेंगे।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १८-१-१९२५