पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/४२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३९१
भाषण: महिला क्रिश्चियन कालेज, मद्रासमें

लेकिन हमें हताश नहीं होना चाहिए। जबतक हिन्दी सीखनेका इच्छुक एक भी तमिलभाषी रहेगा तबतक यह संस्था बनी रहेगी; जिन लोगोंने अपने ऊपर यह भार लिया है उन्हें अपने-आपपर पूरा भरोसा है। साथ ही तमिल लोगोंको उनके प्रान्तमें आकर हिन्दी सिखानेका काम जिन हिन्दी-प्रेमियोंने उठाया है, वे उनसे यह कहे बिना न रहेंगे कि तमिल लोगोंने पर्याप्त उत्साह नहीं दिखाया है।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, २४-३-१९२५

२१६. भाषण: महिला क्रिश्चियन कालेज, मद्रासमें

२४ मार्च, १९२५

आप जानती ही है कि मैं भारतमें अपनी यात्राके दौरान छात्रों और छात्राओंसे मिलता रहता हूँ। लेकिन मैं जब भी दक्षिणमें आता हूँ तब मुझसे मिलनेके लिए शायद बंगालको छोड़कर अन्य सभी जगहोंकी अपेक्षा यहाँ सबसे ज्यादा लड़कियाँ आती हैं। बंगाल लड़कियोंकी शिक्षामें उत्तर भारतके अन्य सभी प्रान्तोंसे आगे बढ़ा हुआ है, लेकिन वह दक्षिण भारतसे किसी भी हालतमें आगे बढ़ा हुआ नहीं है। त्रावणकोरमें लड़कियोंकी शिक्षाका जितनी तेजीसे प्रसार हुआ है, उसे देखकर तो मैं सचमुच आश्चर्यचकित रह गया हूँ। इसने तो मेरी आँखें ही खोल दी हैं। यह सवाल मेरे मनमें शुरूसे ही उठता रहा है: "भारत अपनी इन आधुनिक लड़कियोंका क्या करेगा?" मैं आपको भारतकी आधुनिक लड़कियाँ कहता हूँ। इन संस्थाओंमें हम जो शिक्षा पा रहे हैं, वह मेरी रायमें हमारे चारों ओरके जीवनसे मेल नहीं खाती, और हमारे चारों ओरके जीवनसे मेरा मतलब शहरोंमें हमारे चारों ओरके जीवनसे नहीं, बल्कि गाँवोंमें हमारे चारों ओर मौजूद जीवनसे है। आप सब नहीं तो आपमें से कुछ लड़कियाँ शायद जानती है कि सच्चा भारत इन चन्द शहरोंमें नहीं, बल्कि १,९०० मील लम्बे और १,५०० मील चौड़े भू-भागमें बसे हुए ७ लाख गाँवोंमें ही देखा जा सकता है। सवाल यह है कि आपके पास अपनी ग्रामीण बहनोंके लिए कोई सन्देश है या नहीं। सन्देशकी इतनी जरूरत शायद पुरुषोंको नहीं है जितनी स्त्रियोंको है, और मैं बहुत पहले ही इस निष्कर्षपर पहुँच चुका हूँ कि जबतक भारतकी स्त्रियाँ पुरुषोंके साथ कन्धेसे-कन्धा मिलाकर काम नहीं करतीं तबतक भारतको मुक्ति नहीं मिल सकती--मुक्ति एक अर्थमें नहीं, कई अर्थोमें नहीं मिल सकती। मेरा मतलब व्यापकतम अर्थमें राजनीतिक मुक्ति और फिर आर्थिक और आध्यात्मिक मुक्तिसे भी है।

हम अपनेको ईसाई, हिन्दू या मुसलमान कह सकते हैं। इस अनेकताके मूलमें एक स्पष्ट एकता है, और अनेक धर्मोंके मूलमें भी एक धर्म है। जहाँतक मेरे अनुभवकी बात है, हम मुसलमान, ईसाई या हिन्दू, किसी-न-किसी अवसरपर पाते हैं कि