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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हममें समानता बहुत-सी बातोंमें है और भेद बहुत थोड़ी-सी बातोंमें। तब मैं चाहता हूँ कि आप अपने मनमें एक बात सोचें कि आपके पास गाँवोंके लिए, गाँवकी स्त्रियोंके लिए, वहाँकी अपनी बहनोंके लिए कोई सन्देश है या नहीं। मुझे दुःख है कि आप भी मेरी तरह इसी नतीजेपर पहुँचेंगी कि जबतक आपकी शिक्षामें कुछ और चीज जोड़ी नहीं जाती तबतक आपके पास उनको देनेके लिए कोई सन्देश न होगा। यह सच है कि आजकी शिक्षा प्रणालीमें ग्रामीण जीवनकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। दुनियाके दूसरे भागोंमें ऐसी बात नहीं है। दुनियाके दूसरे भागोंमें मैंने देखा है कि जिनके हाथमें शिक्षाका प्रबन्ध है वे उन जनसाधारणको बराबर ध्यानमें रखते हैं जिनके बीच स्कूलों और कालेजोंसे निकलनेवाले छात्रोंको जाकर रहना और फैलकर काम करना पड़ेगा। लेकिन मैं भारतमें देखता हूँ कि छात्रोंका जनसाधारणसे कोई सम्बन्ध या सम्पर्क ही नहीं है। मैं निश्चित तौरपर जानता हूँ कि आपमें से कुछ छात्राएँ गरीब माँ-बापकी सन्तान हैं और खुद भी गरीब हैं। अगर आपने यह बात खुद न समझी हो, तो मैं आपसे कहता हूँ कि आप उसे अब समझ लें और अपने मनमें सोचें कि क्या आपने जो बातें यहाँ सीखी हैं उन्हें आप उनके पास ले जा सकती हैं और क्या आपके घरके जीवनमें और स्कूलके जीवनमें कोई वास्तविक अनुरूपता है। इस अनुरूपताका अभाव ही दुःख-मूलक लगता है। इसीलिए मैं भारतके सभी छात्रोंसे कहता हूँ कि वे स्कूलोंमें जो-कुछ सीख रहे हैं उसमें कुछ और भी जोड़ें तब आप देखेंगे कि कुछ सन्तोष प्राप्त हुआ है, जनसाधारणको भी कुछ सन्तोष मिला है और उन लोगोंको भी सन्तोष मिला है जो जनसाधारणके हितकी बात सोचते हैं।

मैं जानता हूँ कि ईसाई लड़कियाँ और लड़के---कमसे-कम कुछ लड़के और लड़कियाँ---ऐसा मानते हैं कि उनको जनताके विशाल समुदायसे कोई वास्ता नहीं है। यह उनका निरा अज्ञान है। आजकल कोई भी भला ईसाई यह नहीं कहता और मुझे विश्वास है कि इस कालेजमें आपका कोई शिक्षक भी आपको ऐसी शिक्षा नहीं देता और आपको यह नहीं सिखाता कि आपका जनसाधारणसे कोई वास्ता नहीं है और आप जनसाधारणसे सर्वथा भिन्न और पृथक् हैं। आप किसी भी धर्मकी माननेवाली क्यों न हों, मैं कहता हूँ कि आप भारतमें पैदा हुई हैं, भारतका अन्न खाती हैं और भारतमें जीवन बिताती हैं। अगर आप जन साधारणके साथ तादात्म्य स्थापित न कर सकेंगी तो आपका जीवन बहुतसे अर्थों में अपूर्ण रहेगा। जनसाधारण और आपको एकमें पिरोनेवाला सूत्र कौन-सा है? आपको शायद मालूम हो जायेगा या बता दिया जायेगा कि भारतमें साक्षर लोगोंकी प्रतिशत संख्या कितनी हास्यास्पद और नाममात्रकी है। आपको शायद बताया जायेगा कि भारतमें साक्षरता बराबर घटती जा रही है, जबकि उच्च शिक्षा बढ़ रही है। कारण कुछ भी हो, जनसाधारणमें शिक्षा बराबर घट रही है। पचास साल पहले गाँव-गाँवमें स्कूल थे, लेकिन वे अब संरक्षकोंके अभावमें बन्द हो चुके हैं। सरकारने नये स्कूल खोले हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश जिनके हाथोंमें शिक्षाका प्रबन्ध था, उन्होंने इन ग्रामीण स्कूलोंकी ओर बिलकुल ध्यान