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२१७. भाषण: "स्वराज्य" कार्यलय, मद्रासमें[१]

२४ मार्च, १९२५

इस समय मेरी जो महत्वाकांक्षा है उसे आपने अत्यन्त ही स्पष्ट रूपमें व्यक्त कर दिया है। मैं खाते, सोते और सभी समय सूत कातने, खद्दर बुनने, अस्पृश्यतानिवारण करने और लगभग सारे वर्गों तथा जातियोंके बीच एकता पैदा करनेकी बातके अलावा और कुछ सोच नहीं सकता। लेकिन इनमें से अन्तिम दो चीजोंके मामले में काम करनेकी हमारी क्षमता समिति ही है। सभी लोग न तो अस्पृश्यता-निवारणमें समान योग दे सकते हैं, और न सभी लोग विभिन्न वर्गोंको, जैसे वर्तमान समयमें हिन्दुओं और मुसलमानोंको, या जैसा मुझे अभी मालूम हुआ है, अब्राह्मणों और ब्राह्मणोंको करीब लानेमें ही बराबर योग दे सकते हैं। (हँसी)। मैं कहता हूँ कि यह कोई ऐसा काम नहीं है जिसमें हर आदमी सिर्फ कुछ योग देकर या कुछ कामोंसे बचा रहकर मदद पहुँचा सके। अतः यह कार्य अनिश्चित स्वरूप ग्रहण कर लेता है, जबकि सूत कातकर और खद्दर पहनकर नौजवान, बूढ़े और अपाहिज सभी यथाशक्ति योग दे सकते हैं। एक छोटा-सा पंचम बालक भी चाहे तो हाथ-कताईमें श्री प्रकाशम को मात दे सकता है; (हँसी)। और एक साधारणसे-साधारण आदमी भी खद्दर पहननेके मामले में श्री श्रीनिवास आयंगरसे बाजी मार ले जा सकता है।

अत: मैं इस मानपत्रमें दिये गये इस आश्वासनके लिए कृतज्ञ हूँ कि 'स्वराज्य' खद्दर और चरखेके सन्देशको न छोड़ेगा, बल्कि इस सन्देशको गाँव-गाँवमें पहुँचायेगा। मैं नहीं जानता कि वह इस सन्देशको गाँव-गाँवमें कैसे पहुँचायेगा, क्योंकि लोग अंग्रेजीमें छपनेवाले 'स्वराज्य' को तो पढ़ते नहीं। मैं मानता हूँ कि देशके सामने यही एक कार्यक्रम ऐसा है जो सबसे सरल है और जिसमें सब भाग ले सकते हैं। लेकिन सरलतम योजनाएँ ही अधिकतम महत्त्वपूर्ण होती हैं। मैं जानता हूँ कि इस समय मेरे पास देनेके लिए सिर्फ यही सन्देश है; ऐसी है हमारी दुःखजनक स्थिति। मैंने कालेजकी लड़कियोंके सामने बोलते हुए कहा था कि भारतमें घोर निरक्षरता है, और हमारे कुछ प्रतिशत देशवासी ही पढ़-लिख सकते हैं। वे इस सन्देशको अखबारोंसे कैसे प्राप्त कर सकते हैं? इसलिए मैंने श्री प्रकाशमसे पूनामें कहा था कि वे चलतेफिरते अखबार बन जायें। मैंने सबको यही सलाह दी है। अगर हम कम बातें करें या केवल चरखेकी ही बात करें, तो चरखेका सन्देश फैलेगा। आप अपने हाथमें चरखा लें, गाँवमें कहीं भी जमकर बैठ जायें और केवल उसे चलायें बस, गाँववाले और उनके बच्चे उसे अपना लेंगे।

१. स्वराज्यके सम्पादक श्री टी० प्रकाशम द्वारा पत्रके कर्मचारियों और संचालकोंकी ओरसे दिये गये मानपत्रके उत्तरमें।