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२१९. भाषण : अभिनन्दन-पत्रके उत्तरमें[१]

२४ मार्च, १९२५

मित्रो,

आपने जो अभिनन्दन-पत्र दिया है उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। मैंने स्वराज्य प्राप्त करनेका जो उपाय बताया है, उसे आप जानते ही हैं। सबसे पहली बात यह है कि हम सभीको देशके लिए कमसे-कम आधा घंटा रोज सूत कातना चाहिए। हम सभीको हाथकता और हाथबुना खद्दर पहनना चाहिए। आपसे जो-कुछ कहा जा रहा है अगर आप उसे सुनेंगे नहीं, मानेंगे नहीं, तो ऐसी सभाओंमें हजारोंकी संख्यामें भीड़ करनेसे आपको कोई लाभ न होगा। इसलिए आपमें से हरएकको विदेशी वस्त्रोंका त्याग करना और खद्दर पहनना चाहिए। हिन्दुओंको चाहिए कि वे अस्पृश्यताको अपराध और पाप समझें। हिन्दुओं, मुसलमानों, ईसाइयों, पारसियों और यहदियों, सभीको मिलजुलकर शान्तिपूर्वक और भाई-भाईकी तरह रहना चाहिए। हमको जुआ खेलना और शराब पीना छोड़ देना चाहिए और अपनी-अपनी पद्धतिके अनुसार विनम्र भावसे ईश्वरकी पूजा करनी चाहिए। हम सभीको सुबह तड़के मुँह धोकर, दाँत साफ करके और अपने आपको पूरी तरह स्थिर चित्त बनाकर ईश्वरका नाम लेना चाहिए। हमें ईश्वरसे प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमें नेक बनने और नेक रहने में सहायता दे। हमें उससे प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमें अपने देशके प्रति अपने कर्त्तव्यका पालन करने में सहायता दे। हमें किसीका अहित करने या किसीको आघात पहुँचानेका विचार मनमें नहीं लाना चाहिए। अगर हम ये सब काम कर सकें, तो मुझे साफ दिखाई पड़ता है कि हम बहुत ही कम समयमें स्वराज्य प्राप्त कर लेंगे। अगर हमें ये सब काम करने हैं तो हमें अनुशासन-पालन सीखना होगा। मेरा या किसी अन्य देश-सेवीका जयके नारे लगाना और शोर करना बिलकुल बेकार है।

अगर हम उपयुक्त अवसरोंपर कुछ राष्ट्रीय नारे लगाना चाहते हैं, तो वे नारे एक आवाजमें लगाये जाने चाहिए, लेकिन हर मौकेपर और हर समय नहीं। इनके लिए कुछ निश्चित अवसर होने चाहिए। पहले नेताको नारा लगाना चाहिए उसके बाद दूसरे लोगोंको। जब सभा आरम्भ हुई, उस समय बड़ा शोर-गुल हो रहा था। अगर हमें देशका सैनिक बनना है, तो हमें सैनिकोंकी तरह ही आचरण करना चाहिए। अतः हमारा चलना-फिरना और उठना-बैठना सब व्यवस्थित होना चाहिए। हम सभाएँ करें, तो इस ढंगसे करें कि उनमें हजारों लोग बिना किसी असुविधा और शोर-शराबेके भाग ले सकें। मेरे पैर छूनेसे या मुझपर फूल बरसानेसे कुछ लाभ न होगा। ऐसा अन्धा प्रेम और भक्ति-भाव स्वराज्यको निकट नहीं ला सकता।

१. यह अभिनन्दन-पत्र मद्रासको कांग्रेस सभा द्वारा दिया गया था। गांधीजीके भाषणका तेलुगुमें अनुवाद श्री एम० एस० सुब्रह्मण्यम् अय्यरने किया था।