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त्रावणकोरके बारे में

राज्य-संरक्षिका महारानी

लेकिन मैं यह टिप्पणी आलोचनाकी भावनासे नहीं लिखना चाहता, क्योंकि मेरे दिमागमें त्रावणकोरकी जो तस्वीर है वह पूरी तरह खुशगवार है। महारानीसे मिलकर तो मुझे हर्ष और आश्चर्य ही हुआ। मेरा खयाल था कि महारानी कोई बेहद सजी-धजी महिला होगी और हीरोंसे जड़े आभूषण और कण्ठहार पहने होंगी। किन्तु वहाँ मैंने कुछ और ही देखा; मैंने देखा कि मेरे सामने एक ऐसी सुशील युवती खड़ी है, जो सौन्दर्यके लिए आभूषणों और भड़कीले वस्त्रोंपर नहीं, बल्कि अपनी सहज सुन्दर मुखाकृति और अपने मर्यादित व्यवहारपर निर्भर है। उनकी वेशभूषा जैसी सादी थी, उनके कमरेकी सजावट भी वैसी ही सादी थी। उनकी कठोर सादगी देखकर मेरे मनमें ईर्ष्या उत्पन्न हुई। मुझे लगा कि वे उन अनेक राजाओं और लखपतियोंके सम्मुख एक पदार्थपाठकी तरह हैं, जिनकी तड़क-भड़कवाली कीमती कामदार पोशाक, भद्दे दिखनेवाले हीरे, अँगूठियाँ और नगीने और इससे भी ज्यादा आँखको गड़नेवाला और लगभग गँवारू फर्नीचर कुरुचिपूर्ण लगते हैं, और जिस जन-साधारणसे वे अपनी सम्पदाका संग्रह करते हैं, उनसे जब तुलना करते हैं तो दोनोंकी स्थितियोंमें बहुत बड़ा सन्तापकारी अन्तर मालूम होता है। मुझे तरुण महाराजा और छोटी महारानीसे मिलनेका भी सौभाग्य प्राप्त हुआ। मैंने सारे महलमें चारों ओर वही सादगी देखी। महाराजा एक हिमधवल धोती पहने थे जो उन्होंने लूँगीकी तरह लपेट रखी थी और उनके तनपर कमरसे जरा नीची बंडी थी। मेरा खयाल है कि आभूषणके नामपर उनकी अँगुलीमें एक अंगूठी भी नहीं थी। छोटी महारानीकी वेशभूषा भी उतनी ही सादी थी, जितनी राज्य-संरक्षिका बड़ी महारानीकी। मैंने देखा उन्होंने केवल एक पतला-सा मंगलसूत्र पहन रखा था। दोनों महिलाएँ हाथकी बुनी सफेद साड़ियाँ और उसी प्रकारके कपड़ेकी आधी बाहवाली कुरती पहनें थीं। कुरतीपर कोई लेस या कड़ाईका काम नहीं था।

आशा है, पाठक त्रावणकोर राज-परिवारके इस सूक्ष्म चित्रणके लिए मुझे क्षमा करेंगे। इसमें हम सबके लिए एक सबक है। राज-परिवारकी सादगी इतनी स्वाभाविक इसलिए थी कि वह समूचे वातावरणसे मेल खाती थी। मैं यह कहे बिना नहीं रह सकता कि मुझे मलाबारकी स्त्रियाँ बहुत अच्छी लगी हैं। मैंने असमको छोड़कर इतनी सादी और फिर भी सुरुचिपूर्ण वेशभूषावाली स्त्रियाँ मलाबारके अलावा भारतमें अन्यत्र कहीं नहीं देखीं। लेकिन मैं असमकी बहनोंसे कहना चाहता हूँ कि मलाबारकी स्त्रियाँ तो सम्भवत: उनसे भी ज्यादा सादी हैं। उन्हें अपनी साड़ियोंमें किनारीकी भी जरूरत नहीं होती और वे चार गजसे कमकी ही होती हैं। इसके विपरीत पूर्वी तटकी तमिल बहनोंको अपने लिए लगभग दस गजकी गहरे रंगोंवाली साड़ियोंकी जरूरत होती है। मुझे मलाबारकी स्त्रियोंको देखकर सीताके वनवासकी याद आई, जब उन्होंने अपने पथमें पड़नेवाले मैदानों और जंगलोंको अपने सुन्दर और नंगे चरणोंसे पावन किया था। मेरे लिए उनके श्वेत वस्त्र आन्तरिक पवित्रताके चिह्न हैं। मुझे बताया गया कि पूरी स्वतन्त्रता होनेपर भी मलाबारकी स्त्रियाँ बहुत ही पवित्र आचरणकी हैं। मैं वहाँकी सुशिक्षित और प्रगतिशील लड़कियोंसे मिला। उनकी आँखोंसे भी