पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/४३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४००
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वही शील और सौजन्य झलकता था जो ईश्वरने भारतकी स्त्रियोंको शायद औरोंसे कहीं ज्यादा दिया है। मुझे लगा कि उनकी शिक्षा और उनकी स्वतन्त्रता उनकी इस शालीनताका अपहरण नहीं कर पाई है। मलाबारके पुरुषोंकी रुचि भी सामान्यतः वहाँकी स्त्रियोंकी रुचिकी तरह ही सादी है। लेकिन यह कहते हुए दुःख होता है कि तथाकथित उच्च शिक्षाने पुरुषोंपर खराब असर डाला है और कइयोंने अपने मूल लिबासकी सादी चीजोंमें और कई चीजें बढ़ा ली हैं, और ऐसा करके असुविधा मोल ले ली है, क्योंकि इस देशके अत्युष्ण जलवायुमें सफेद और कमसे-कम वस्त्र ही उपयुक्त हैं। लोग इसमें अस्वाभाविक और अशोभनीय कपड़े बढ़ाकर कला और स्वास्थ्य, दोनोंके ही नियमोंका उल्लंघन करते हैं।

खद्दरकी कमी

मलाबारके स्त्री-पुरुषोंका सामान्यत: ऐसा प्रशंसात्मक विवरण पढ़ने के बाद पाठक यह अपेक्षा करेंगे कि वहाँ अवश्य ही खद्दरका बहुत व्यापक प्रयोग होता होगा। लेकिन मुझे दुःखके साथ कहना पड़ता है कि बात ऐसी नहीं है। हालाँकि मलाबारमें मिलके बने कपड़े पहननेका कोई उचित कारण नहीं है, फिर भी वहाँ खद्दरकी प्रगति नहींके बराबर है। यदि वहाँ खद्दरका काम अच्छी तरह संगठित किया जाये तो लोग खद्दरको बिना किसी कठिनाईके अपना लेंगे, क्योंकि वहाँके लोगोंके पास खद्दर इस्तेमाल न करनेका वैसा कोई बहाना नहीं है, जैसा भारतके अन्य भागोंमें है। उन्हें रंग-बिरंगे कपड़े नहीं चाहिए। उन्हें ज्यादा लम्बे कपड़ोंकी जरूरत नहीं। वे सिरपर पगड़ी या और कोई चीज नहीं पहनते। इसलिए वे अपनी रुचिमें बिना कोई भारी परिवर्तन किये हुए खद्दरको अपना सकते हैं। मुझे किसी भी मलाबारीने लोगोंको खद्दर अपनानेके लिए राजी करने में कोई कठिनाई होनेकी बात नहीं कही। हाँ, कुछ लोगोंने खद्दरके बहुत महँगे होनेकी बात जरूर कही। लेकिन स्थानीय रूपसे बनाया गया खद्दर महँगा नहीं होगा, क्योंकि मजदूरीकी दर नीची है। लेकिन किसीने चरखे और खद्दरके कार्यको संगठित रूप देनेकी बात ही नहीं सोची है। खुशीकी बात है कि वहाँ अभी यह कला बिलकुल समाप्त नहीं हुई है। कन्याकुमारीके पास आज भी एक हाट लगती है जिसमें हाथका कता सूत बेचा जाता है। वहाँ हजारों बुनकर है जो मिलके बने सूतका कपड़ा बुनते हैं।

प्रान्तीय कांग्रेस कमेटीने कुछ काम किया है, लेकिन वह बहुत ही कम है। वाइकोमके सत्याग्रही इससे कहीं ज्यादा काम कर रहे हैं। लेकिन अभी बहुत-कुछ करनेकी जरूरत है।

आशा

अभी हालमें विधान परिषद्में एक प्रस्ताव पास किया गया है। इसमें सरकारसे कहा गया है कि वह राज्यके देशी भाषाके स्कूलोंमें चरखा चलवानेकी व्यवस्था करे। दीवान महोदयने श्रीमूलम जनसभामें भाषण देते हुए कहा कि इस प्रस्तावको अगले सत्रसे कार्यरूप दिया जायेगा। उसके लिए चालू वर्षके बजटमें व्यवस्था कर दी गई है