पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/४३३

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त्रावणकोरके बारेमें ४०३ केवल ३८,१८,६५२ रुपयेकी आमदमी हुई थी, जबकि राजस्वके रूपमें १,९६,७०,१३० रुपया मिला था । मैं इसे राज्यके प्रशासनपर बहुत बड़ा धब्बा मानता हूँ । मादक वस्तुओंके करसे राज्यकी आयका इतना अधिक भाग मिलना एक ऐसी बात है जिसपर गम्भीरता से विचार करनेकी जरूरत है । विभिन्न मदोंसे मादकद्रव्य-करकी वसूली इस प्रकार हुई : आबकारी अफीम और गाँजा तम्बाकू २६,८२,३६७ रुपये ३,११,६३५ रुपये १७,००,२९८ रुपये ४६,९४,३०० रुपये कुल इससे स्पष्ट है कि शराबकी आयकी रकम एक बहुत बड़ी रकम है। मुझे बताया गया है कि मद्यपानकी बुराई ईसाइयोंमें सबसे अधिक है। उनमें इसके कारण 'हजारों घर तबाह हो रहे हैं और ऐसे लाखों लोग जो अन्यथा योग्य और बुद्धि- सम्पन्न हैं, निर्धन और अप्रतिष्ठाके पात्र बन रहे हैं। इस सबसे स्पष्ट प्रकट होता है कि इस मदसे होनेवाली आयकी वृद्धिसे राज्यको यदि हर्ष नहीं है तो विषाद भी नहीं है । विभिन्न जातियाँ इस बुराईके खतरोंको उपेक्षाकी दृष्टिसे देख रही हैं और शराबबन्दीके महत्त्वको नहीं समझ पा रही हैं। इस बुराईको समय रहते जड़से उखाड़ फेंकना जरूरी है । और इसका सबसे कारगर तरीका निःसन्देह यही है कि डाक्टरी नुस्खा दिखानेपर ही शराब हासिल की जा सके, अन्यथा नहीं। लेकिन समस्या यह है कि राजस्वके इस सबसे बड़े साधनको, छोड़ा कैसे जाये । यदि मैं त्रावणकोरका एकतन्त्र शासक होता और वहाँ अपनी मर्जी चला सकता तो मैं राजस्वके इस साधनको सर्वथा समाप्त कर देता और शराबके सभी ठेकोंको बन्द करवा देता। फिर मैं शरावके व्यसनी लोगोंकी गणना करवाता और जिन लोगोंको जरूरत होती, स्वस्थ किस्मके मनोरंजन तथा स्वास्थ्यवर्धक खान-पान या रोजगार देनेके साधन खोजता और उस सूरतमें मैं इस व्यसनसे छुटकारा पाये हुए लोगोंसे यह आशा रखता कि उनकी कार्यक्षमता बढ़ जानेके कारण राज्यको शराबखोरीकी आयकी अपेक्षा अधिक राजस्व मिला करेगा। परन्तु अव एकतंत्रके दिन लद चुके हैं। अब तो लोकतन्त्र ही तन्त्र है । विधान- परिषद् और जनसभा यह सब कर सकती हैं। राज्य संरक्षिका महारानी और राज्यके दीवानपर आक्षेप करके अपने कर्त्तव्यकी इतिश्री समझ लेना अनुचित होगा । जनताको राज्यके प्रशासनमें दिनपर-दिन अधिकाधिक हाथ बँटानेका अवसर दिया जा रहा है। जनता बहुत ही सुशिक्षित है। वह राज्यको, यह राजस्व जबतक मिलता है तबतक उसकी समूची आय इस बुराईके उन्मूलनमें ही व्यय करने के लिए विवश कर सकती है और इस घृणित व्यवसायको सालभरके भीतर ही बन्द करने का आग्रह कर सकती है। परन्तु इसका उन्मूलन एक वर्षमें किया जा सकता है या इससे अधिक समयमें, इसका फैसला जनताको ही करना है । जनताको इसकी जानकारी होनी ही चाहिए कि इसमें भयंकर जोखिम छिपी है । और मैं एक बार फिर पूरे अदबके साथ Gandhi Heritage Portal