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त्रावणकोरके बारेमें

त्रावणकोर सरकारके प्रतिनिधियोंकी हैसियतसे जो अत्यधिक सतर्कता बरती है उसको तो मैं समझ सका हूँ, परन्तु मेरी समझमें यह बात आ नहीं सकी है कि इस बुराईको दूर करने के परिणामोंको सोचकर वे इतने बेचैन क्यों हो उठते हैं। फिर भी मुझे यह विश्वास है कि दोनों ही इस बुराईके निवारणके लिए चिन्तित हैं। हालाँकि राज्यके लोगोंने मुझसे कहा है कि यदि सरकारी अधिकारी छुपे-छुपे और खुले तौरपर सुधार-विरोधियोंका समर्थन न करें तो प्रस्तावित सुधारका जो थोड़ा-बहुत विरोध है, वह भी नहीं रहेगा। परन्तु मैं इस दृष्टिकोणसे सहमत नहीं हो सका हूँ। मुझे तो ज्यादा ठीक यही लगता है कि यह बात बहुत हदतक सन्देहपर आधारित है। इसलिए पिछले सप्ताह इन पृष्ठोंमें दीवानका जो वक्तव्य प्रकाशित किया गया था,[१]मैं उसे ठीक मान लेता हैं। मेरे खयालसे दीवान पूरी ईमानदारीसे विश्वास करते हैं कि अस्पृश्यता-सम्बन्धी सुधारमें वैधानिक कठिनाई है और अभी लोकमत इतना तैयार नहीं है कि कानून बनाकर सुधारको लागू किया जा सके, इसलिए वे सबकी सहमतिसे ही यह सुधार करना चाहते हैं। सुधारक लोगोंका दावा है कि सवर्ण हिन्दुओंने सुधारकी हिमायत करनेवाले परिषद्के प्रस्तावके पक्षमें भारी बहुमतसे मतदान करके स्पष्ट दिखा दिया है कि सवर्ण हिन्दुओंका मत क्या है। वाइकोमसे त्रिवेन्द्रमतक सवर्ण हिन्दुओंके जत्थेकी गत वर्षकी यात्रासे भी यही बात सिद्ध होती है। वे आगे बताते हैं कि सवर्ण हिन्दुओंकी संख्या लगभग आठ लाख है और उनमें सात लाखसे ऊपर नायर लोग हैं और कमसे-कम सार्वजनिक या अर्द्ध-सार्वजनिक सड़कोंके अन्त्यजों द्वारा इस्तेमाल किये जाने के सवालपर तो लगभग सभी नायर सुधारके हामी हैं। वे यह दलील भी देते हैं कि मन्दिर सार्वजनिक सम्पत्ति है जिसकी न्यासी सरकार है। उनके ये सभी तर्क विचारणीय हैं। लेकिन इतने पर भी मुझे लगता है कि सवर्ण हिन्दुओंका भारी बहुमत सुधारके पक्षमें है। सरकार चाहे तो इस निष्कर्षको सही माननेसे इनकार कर सकती है।

सुधार-विरोधियोंने मुझे मिलनेका समय देनेकी कृपा की थी और मैं उनसे मिल लिया हूँ।[२] उनका दावा है कि यह आन्दोलन मुट्ठीभर नवयुवकोंतक ही, जिनमें अधिकांशतः बाहरके हैं, सीमित है। सवर्ण हिन्दुओंकी बहुत बड़ी संख्या अन्त्यजोंकी माँगके विरुद्ध है और विरोधी सनातनी उसे सुधारका नाम देनेके लिए तैयार नहीं हैं कहते हैं कि वाइकोमकी तरह ही मन्दिरोंके आसपासकी सडकोंके इस्तेमालपर सुदीर्घ कालसे ही प्रतिबन्ध चला आता है और उसका आधार स्वयं शंकराचार्यके अपने लेख हैं। उनके प्रवक्ताने कहा कि यदि इन विवादग्रस्त सड़कोंको अन्त्यजोंके इस्तेमालके लिए खोल दिया जाये तो फिर रूढ़िवादी हिन्दू पूजाके लिए मन्दिरोंमें नहीं जा सकेंगे। यह पूछनेपर कि क्या ईसाई और मुसलमान उन सड़कोंका इस्तेमाल कर सकते हैं, प्रवक्ताने उत्तर दिया कि हाँ, और साथमें कहा कि अन्त्यज लोगोंको अपने पिछले जन्मोंके दुष्कोंके दण्डस्वरूप ही इस जन्ममें अन्त्यज बनना पड़ा है; अतः वे इस

१. देखिए परिशिष्ट १।

२. देखिए "वाकोमके सवर्ण हिन्दू नेताओंके साथ बातचीत", १०-३-१९२५।