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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जन्ममें इस दोषसे मुक्त नहीं हो सकते, और इसी दृष्टिसे ईसाई और मुसलमान उनसे ऊँचे हैं। मुझे बताया गया है कि उनका यह प्रवक्ता विद्वान मनुष्य है। मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं कि उसने जो भी कहा है उसपर उसका विश्वास है। मैं इसलिए उसको आदर और स्नेहके योग्य अपना मित्र मानकर उसके साथ वैसा ही बर्ताव भी करनेको तैयार हूँ, हालाँकि मैं उसके विचारोंको नितान्त भ्रान्तिपूर्ण और हिन्दू धर्म तथा मानवीयताके सर्वथा विरुद्ध मानता हूँ। सहिष्णुताका मैं यही मतलब लगाता हूँ। मैं यह नहीं समझता कि किसी एक दिन सभी चीजोंके बारेमें हम एक ही दृष्टिकोण बना सकेंगे, पर मैं यह जरूर मानता हूँ कि कोई समय आयेगा जब हम परस्पर तीव्रसे-तीव्र मतभेदके बावजूद एक-दूसरेके प्रति प्रेमभाव रख सकेंगे।

इसीसे मैंने उनके सामने ये प्रस्ताव रखे:

१. वे अपने कथनके समर्थनमें शंकराचार्यके लेखकी साक्षी प्रस्तुत करें। मैं उसके बारेमें कुछ विद्वान शास्त्रियोंसे परामर्श करूँगा। यदि ये विद्वान शास्त्री उसको प्रामाणिक बतायेंगे और उसका अर्थ ठीक वही लगायेंगे जो रूढ़िवादी हिन्दुओंने लगाया है तो मैं वाइकोम सत्याग्रहको वापस लेनेकी सलाह दे दूँगा। इसका यह अर्थ नहीं है कि मैं इससे सभी स्थानोंमें सत्याग्रह वापस लेनेकी सलाह देनेके लिए बँध जाऊँगा। इसका सीधा-सा कारण यह है, यदि शंकराचार्यका मत अपने जीवन-कालमें ऐसा रहा हो तो भी जो बात मुझे धर्म और मानवीयताके विरुद्ध लगती है, मैं अपने लिए उसका पालन अनिवार्य नहीं मानता।

२. सारा मामला पंच-फैसलेके लिए पंचायतको सौंप दिया जाये। जिसमें तीन सदस्य हों। एक उनका नामजद किया हुआ विद्वान, दूसरा सत्याग्रहियोंकी ओरसे मेरे द्वारा नियुक्त व्यक्ति और तीसरे मध्यस्थ रूपमें त्रावणकोरके दीवान।

३. केवल वाइकोमके या समूचे त्रावणकोर या उसके कुछ चुने हुए क्षेत्रोंके--जैसा पंच ठीक समझें--सभी वयस्क सवर्ण हिन्दू स्त्री-पुरुषोंका मत-संग्रह कराया जाये, और मत-संग्रहकी व्यवस्थामें हाथ बँटाने के लिए सरकारको आमन्त्रित किया जाये।

यह तीसरा प्रस्ताव पहले मैंने ही रूढ़िवादी हिन्दुओंके इस दावेके जवाबमें रखा था कि सवर्ण हिन्दू सुधारके विरुद्ध हैं। लेकिन जब मैंने उनकी बातको आधार मानकर यह कहा कि मैं बड़ी खुशीसे मत-संग्रह करानेके लिए तैयार हूँ, तब यह प्रवक्ता कतरा गये। उन्होंने कहा कि धार्मिक विश्वासके मामलेमें किसी भी मनुष्यको बहतमतका निर्णय माननेके लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। उनकी इस बातमें वजन है, मैंने इसे स्वीकार करके अन्य दोनों प्रस्ताव रखे। यहाँ इसी सिलसिलेमें मैं यह भी बता दूँ कि मैंने मत-संग्रहका प्रस्ताव इसलिए रखा था कि वर्तमान सत्याग्रह, सवर्ण हिन्दू लोकमत सुधारके पक्षमें है, इस मान्यतापर आधारित है।

परन्तु इन सज्जनोंने इनमें से कोई भी प्रस्ताव नहीं माना और मुझे दुःखके साथ कहना पड़ता है कि हम कोई समझौता किये बिना ही एक-दूसरेसे जुदा हुए। इसके बाद मैं महारानीसे मिला और उन्होंने मेरी बात बहुत शिष्टता और धैर्यसे सुनी। वे इस बातके लिए उत्सुक थीं कि वाइकोममें सड़कें अन्त्यजोंके लिए दी जायें और उन्होंने मेरे रखे हुए प्रस्ताव पसन्द किये।