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एक भूल-सुधार

मैंने श्री नारायण स्वामी गुरुसे भी भेंट की। उन्होंने सत्याग्रह आन्दोलनसे पूरी सहमति प्रकट की और कहा कि हिंसा कदापि सफल नहीं होगी और अहिंसा ही एकमात्र मार्ग है। दूसरे दिन मैं दीवानसे मिला। उन्होंने भी कहा, मैं पूरे तौरपर सुधारके पक्षमें हूँ। मेरी कठिनाई सिर्फ एक ही है कि जबतक लोकमत पूरी दृढ़ता और स्पष्टताके साथ सुधारके पक्षमें न व्यक्त हो मैं तबतक एक प्रशासककी हैसियतसे ऐसा कानून नहीं बना सकता। मैंने उनसे कहा, आप सुधार विरोधियोंसे आग्रहपूर्वक कहें कि वे मेरे किसी भी एक प्रस्तावको मान लें। यदि कोई प्रथा मानवता और जनताकी नैतिकताके विरुद्ध हो, जैसी कि यह है, तो सुधार विरोधी लोग किसी प्राचीन प्रथाकी आड़ नहीं ले सकते।

सत्याग्रहीका कर्त्तव्य

इस समय स्थिति यही है। इसका परिणाम सत्याग्रहियोंके अपने हाथमें है। उनको थकान अनुभव किये बिना, निराश हुए बिना, क्रोध अनुभव किये बिना, झल्लाहट दिखाये बिना, विरोधियों और सरकारके प्रति सहिष्णुता दिखाते हुए अपना प्रयत्न जारी रखना चाहिए। वे अपने शालीनतापूर्ण आचरण और धैर्यपूर्वक कष्ट सहनके बलपर ही अन्धविश्वासकी दुर्भद्य भित्ति गिरा सकेंगे और यदि तब भी कट्टरपन्थी उनके सौजन्यके सामने नहीं झुकते तो वे लोकमतको अपने पक्षमें करके सरकारको निर्णय करनेके लिए मजबर कर सकेंगे।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २६-३-१९२५

२२१. एक भूल-सुधार


मैंने पिछले दिनों लिखा था कि सेवासदनमें एक कताई वर्ग खोला जा रहा है।[१] पत्र लिखनेवाली बहनका कहना है कि उन्होंने सेवासदनमें नहीं, बल्कि सारस्वत भवनमें उक्त वर्गके खोले जानेकी बात लिखी थी। मुझे इस भूलके लिए खेद है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २६-३-१९२५

१. देखिए "टिप्पणियाँ", ५-३-१९२५ के अन्तर्गत उपशीर्षक "मरुस्थलमें हरियाली"।