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संगसारीकी सजा

स्थिति विषम-सी हो जाती है। इस्लामी दुनियामें आपकी जो इज्जत है उसे बनाये रखने के खयालसे ही मैं आपको ऐसी बात लिख रहा हूँ। 'कुरान' शरीफ, पैगम्बर साहबका व्यवहार और इस्लामी दुनियाका सामूहिक निर्णय, इन तीनोंके मिलनेसे शरीयत बनती है। कोई भी सच्चा मुसलमान उसके हुक्मके खिलाफ कुछ भी न कर सकेगा। शरीयतके मुताबिक यह स्पष्ट है कि मुर्तदोंको मौतकी सजा दी जानी चाहिए। कुरान शरीफमें इस बारेमें कुछ नहीं लिखा है, फिर भी इस्लामके ऊपर बताये दूसरे दो साधनोंसे यह बात स्पष्ट हो जाती है।

मौ० एम० सफदर अली स्यालकोटसे इस प्रकार लिखते हैं:

आप सच कहते हैं कि 'कुरान' में "रजम" यानी संगसारीकी सजा कहीं भी नहीं बतई गई है। 'कुरान' में यह शब्द सिर्फ दो मरतबा आता है (सूरा हद आयत: ९१, सूरा गुफा आयत: २०)। वहाँ पुरानी प्रथाके रूपमें उसका उल्लेख है; वह 'कुरान' की आज्ञा नहीं है। आपका यह कहना बिलकुल सही है कि आजकी दुनियामें नैतिक दृष्टि से यह जंगली सजा असह्य है और यह कह कर आप 'कुरान' की शिक्षाके खिलाफ या मुसलमानोंकी भावनाओंको ठेस पहुँचानेवाली कोई बात नहीं कहते। मेरा खयाल है कि मौ० जफरअली खाँका "रजम" को इस्लामी शरीयत मानना सही नहीं है। 'कुरान' इस बारेमें कुछ नहीं कहती और बादमें उलेमाओंन भी इसका अर्थ क्या लगाया, इस बारेमें लोगोंके विचार अलग-अलग है।

वोकिंगके मुस्लिम मिशनके नेता ख्वाजा कमालुद्दीन लिखते हैं:

'कुरान' में इस दुनिया मुर्तदोंके लिए किसी भी प्रकारको सजा नहीं बनाई गई है। उसमें मजहबी बातोंके लिए अन्तरात्माको पूर्ण स्वतन्त्रता दी गई है और इस सम्बन्धमें जबरदस्तीकी मनाही की गई है। खुद पैगम्बर साहबके जमानमें भी मुर्तदोंके अनेक दृष्टान्त पाये गये हैं। लेकिन कहीं भी सिर्फ इसी कारण उन्हें सजा नहीं दी गई थी। किसी भी प्रकारकी परम्परा 'कुरान' से अधिक नहीं हो सकती। स्वयं पैगम्बर साहबने कहा था कि मेरे नामपर बहुतसो बातें चलेंगी, लेकिन यदि वे 'कुरान' के मुताबिक हों तो उन्हें मेरी मानना, वरना वे मेरी नहीं हैं यही समझना। "पैगम्बर साहबके व्यवहार" में से सत्यको परखनकी यही एक कसौटी है।

मुझे यह जानकर बड़ी खुशी होती है कि 'कुरान' में संगसारीकी सजा नहीं है। यह मैंने नहीं कहा था कि निश्चय ही 'कुरान' में ऐसी सजा बताई गई है। मैंने कहा था " मैंने सुना है कि संगसारी इत्यादि...।" लेकिन मौलाना जफरअली खाँ यह कहते हुए भी कि 'कुरान' में ऐसी सजा नहीं बताई गई है, बहुत उत्साहसे तर्क देकर उसका समर्थन करते हैं और इस्लाममें उसका स्थान सिद्ध करते हैं। किसी