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सम्पूर्ण गांधी वाड़्मय

अपनी इच्छासे जेल जाना था। किन्तु आज जेल जानेका समय नहीं है। आज जेल जानेके लिए दूसरी ही शर्ते लागू होंगी। भारतके सर्वसाधारण लोगोंने अभी उन गुणोंका अर्जन नहीं किया है जो जेल जानेके लिए आवश्यक होते हैं। फिर भी मैं यह मानता हूँ कि इने-गिने लोग ही इस कामके लिए काफी होंगे। ये इने-गिने लोग आप लोगोंमें से चुने जा सकें, यह मेरी महत्त्वाकांक्षा है। किन्तु वह एक अलग बात है। इस समय मेरी अपेक्षा कुछ और ही है।

आप एक अच्छा काम करते थे। सब लोगोंको आशा थी कि हम बारडोलीमें चाहे और कुछ भी न कर सकें, किन्तु खादीका उत्पादन अवश्य कर सकेंगे। आप समझ गये थे कि यह करने में ही आपकी शोभा है। किन्तु इस समय आप यह सब भूल गये हैं। आपकी श्रद्धा कहाँ चली गई? मेरे जैसा कोई आदमी यदि आप लोगोंके बीचमें आये और उतावलीमें एकाध काम शुरू कर दे, ऐसा काम जो आप लोगोंको पसन्द नहीं है, तो क्या आप उसकी बातोंमें आकर अपने हाथका अच्छा काम भी छोड़ देंगे।

किन्तु आपने तो यही किया। आपने आश्रमकी स्थापना की थी। आश्रमके लिए एक पारसी भाईने पैसा दिया था। यह पारसी भाई हातमताई-जैसा उदार व्यक्ति था। उस जैसे उदार आदमी कम ही होंगे। वह राजा बलिके समान दानी था। इसका नाम था रुस्तमजी।[१] सरभोणकी बस्ती जबतक रहेगी, तबतक इसका नाम भी अमर रहेगा। उसका आप लोगोंसे कोई ताल्लुक नहीं था। आपका और उसका धर्म भी एक नहीं था। किन्तु उसने इन सब बातोंको नहीं सोचा। जब उसने सुना कि बारडोलीके लोग बहादुर हैं और आत्मत्यागी हैं, तो उसने पैसा भेज दिया और उस पैसेसे आपने जो दो आश्रम बनाये उनके कार्यकर्ताओंको जीवन-वेतन दिया जा रहा है।

इन आश्रमोंमें गुजरातके उत्तमसे-उत्तम सेवक भी आये। नरहरि[२] भी उनमें से एक थे। किन्तु उसने तो आपका गुनाह किया। अगर मैं अपने लड़केको अपनी जगह बिठा दूँ और वह गलती करे तो वह गलती मेरी मानी जायेगी--अगर वह बिगड़ा हुआ लड़का हो तो बात दूसरी है। नरहरिको मैंने अपनी जगह बैठाया। आश्रममें यह मेरे साथ काम करनेवाला आदमी है और मेरा उसपर विश्वास है। हमने बाहरसे पैसा लाकर बारडोलीमें उँडेला। सारी दुनियामें हमने बारडोलीका नाम उजागर किया। सारे देशमें बारडोलीके गीत गाये गये। लोगोंने यह सोचकर वहाँ कार्यकर्ता भेजे कि अगर बारडोलीकी बदनामी हुई तो यह बहुत बुरी बात होगी। नरहरि भी इन्हीं में से एक था। उसने आपका जो अपराध किया, वह यह था कि उसने दुबलोंको पढ़ाना और उनकी सेवा करनी शुरू की। मैं आपसे कह देना चाहता हूँ कि यह तो एक करने लायक अपराध था।

हिन्दू धर्म सिखाता है कि गरीबसे-गरीबकी सेवा करके ही हम अपने मुँहमें कौर डालें। हमारा धर्म हमसे कमजोर पशुओंका रक्षण करनेके लिए भी कहता है।

 
  1. पारसी रुस्तमजी; द० आफ्रिकामें गांधीजीके सहयोगी।
  2. नरहरि द्वारकादास परीख।