पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५
भाषण: भुवासणमें

उनकी हड्डी-हड्डी दिखती हो, तो भी वह उन्हें अबध्य कहता है। हमें चींटियोंको भी चून डालना चाहिए, प्राणि-मात्रपर ममता रखनी चाहिए। ऐसा शिक्षण देनेवाला धर्म हमसे यह अपेक्षा नहीं रखता कि हम मनुष्योंके साथ पशुओंसे भी खराब व्यवहार करें। वह तो हमें गरीब आदमीपर दया रखना ही सिखाता है। हमें उनके साथ सगे-सम्बन्धियों जैसा व्यवहार करना चाहिए। बहुत-से पुराने कुटुम्बोंमें नौकर, नौकरकी तरह नहीं, मालिककी तरह होता है। हम उनके बच्चोंको जो हमारे ही बच्चोंकी तरह है, बिना खिलाये कैसे रह सकते हैं?

मैं कौन हूँ और नरहरि कौन है? किसीके साथ जबरदस्ती तो नहीं की जा सकती। नरहरि, जुगतराम[१] और अन्य लोग आपके ऊपर जबरदस्ती करनेके लिए नहीं आये थे। किन्तु अगर उन्हें दुःखका अनुभव होता है, तो वे क्या करें? अगर आदमी निर्दयी बन जाये और अपनी पत्नीको मारे तो पत्नी क्या कर सकती है? वह रोयेगी और अन्न छोड़ देगी। आदमी गुस्सा करता है तो इसमें दोष आदमीका है कि ईश्वर का? मैं अपने अनुभवसे कहता हूँ। मैं विवाहित हूँ और मुझे गृहस्थीका अनुभव है। पति और पत्नीके बीचमें यदि झगड़ा हो जाये, तो औरत या तो कटुशब्द कहेगी या रोयेगी, नरहरिने ऐसा ही किया, जैसा स्त्री करती है। उसने खाना बन्द कर दिया और आप लोगोंने माना कि उसने आपके ऊपर अत्याचार किया है। किन्तु बात एसी नहीं थी। यह व्यक्ति सत्याग्रह कर चुका है। सरकारके विरोध सत्याग्रह करनेवाले व्यक्तिने आपके विरोधमें भी सत्याग्रह किया। सरकारके विरोध किये जानेवाले सत्याग्रहमें उपवासका स्थान ही नहीं है। आपने देखा है कि मैं खुद भी ऐसा नहीं करता। मैंने बम्बईमें[२] उपवास किया था, किन्तु वह अपने ही लोगोंके विरोधमें था--कांग्रेस और खिलाफतके लोगोंके विरोधमें। किन्तु आप लोगोंने जो काम किया है, उसे तो मेरी मौत ही समझिए। किसीको कष्ट देना, जैसा चौरी-चौराके लोगोंने किया, वैसा काम करना सरकारके विरोध किया गया सत्याग्रह नहीं कहला सकता। सरकारके विरोधमें किये जानेवाले सत्याग्रहमें जेल जाना शामिल था; किन्तु उसमें भूखे मरकर ममता उत्पन्न करनेकी बात शामिल नहीं थी। सरकारका हमारी तरफ वैरभाव था, किन्तु नरहरिका तो आपके साथ सेवाभाव और प्रेमभाव था, मित्रताका दावा था। उसका मन तड़प उठा, किन्तु आप क्रोधसे भर गये। अगर आप उसे मार डालते, तो कोई बात नहीं होती। किन्तु आप स्वयं अपने ऊपर क्रोधित क्यों हुए? आपने खादी क्यों छोड़ी? आपने समझा कि नरहरि आपसे झगड़ना चाहता है। आप यह भी कह सकते थे कि आप दुबलोंके लिए कुछ नहीं करना चाहते। किन्तु धुनना, कातना और खादी पहनना छोड़नेका क्या अर्थ है? यह कितना बड़ा जुल्म, कितना बड़ा अनर्थ है?

इसलिए मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि आप लोग उसे फिर अंगीकार करें और अपने कियेका पश्चात्ताप करें। और वह इस रूपमें कि मिलके कपड़ेका व्यव-

 
  1. जुगतराम दवे; लेखक और शिक्षाविद्, पिछड़ी हुई जातियोंकी सेवामें रत रचनात्मक कार्यकर्त्ता।
  2. नवम्बर १९२१ में।