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कन्याकुमारीके दर्शन

नहीं इसपर मुझे कुछ शंका थी। मैंने मन्दिरके अधिकारीसे कह दिया कि उसकी दृष्टिमें जहाँ मुझे जानेका अधिकार न हो वहाँ वह मुझे न ले जाये। मैं उस प्रतिबन्धका आदर करूँगा। उन्होंने कहा कि देवीके दर्शन तो साढ़े पाँच बजे के बाद ही हो सकते हैं और आप लोग चार बजे आये हैं। लेकिन और सब-कुछ मैं आपको दिखा दूँगा। देवी जहाँ विराजती है सिर्फ वहीं जाने के लिए आपपर प्रतिबन्ध होगा, लेकिन यह प्रतिबन्ध तो विलायत जानेवाले सब लोगोंके लिए है। मैंने कहा, "मैं इस प्रतिबन्धका खुशीसे पालन करूँगा।" बातचीतके बाद वह अधिकारी मुझे अन्दर ले गया और मुझसे अन्दरकी प्रदक्षिणा करवाई।

उस समय मुझे मूर्तिपूजक हिन्दूके अज्ञानपर दया न आई बल्कि उसके ज्ञानकी विशेष प्रतीति हुई। मूर्तिपूजाका मार्ग दिखाकर उसने एक ईश्वरको अनेक नहीं बनाया है लेकिन मनुष्य एक ईश्वरके अनेकानेक रूपोंकी पूजा कर सकते हैं और करेंगे, उसने इस सत्यको खोजा है और संसारको बताया है। ईसाई और मुसलमान अपनेको मूर्तिपूजक भले ही न मानें लेकिन अपनी धारणाओंकी पूजा करने वाले भी तो मूर्तिपूजक ही हैं। मस्जिद और गिरजाघर भी एक प्रकारकी मूर्तिपजा हैं। वहाँ जाकर मैं अधिक पवित्र हो सकूँगा इस कल्पनामें भी मूर्तिपूजा है। और उसमें कोई दोष नहीं है। 'कुरान' में या 'बाइबिल' में ही ईश्वरका सक्षात्कार होता है इस कल्पनामें भी मूर्तिपूजा है और वह निर्दोष है। हिन्दू उससे भी आगे बढ़कर यह कहते हैं कि जिसे जो रूप पसन्द आये उसी रूपमें वह ईश्वरकी पूजा करे। पत्थर या सोनेचाँदीकी मूर्तिमें ईश्वरको मानकर उसका ध्यान करके जो मनुष्य अपनी चित्तशुद्धि करेगा उसको भी मोक्ष प्राप्त करनेका पूर्ण अधिकार है। प्रदक्षिणा करते समय यह सब मुझे अधिक स्पष्ट दिखाई दिया।

लेकिन वहाँ भी मुझे सुखमें दुःख तो था ही। मुझे प्रदक्षिणा तो करने दी गई, पर देवीके आसनतक नहीं जाने दिया गया। उसका कारण यह था कि मैं विलायत हो आया था। लेकिन अस्पृश्योंको तो उनके जन्मके कारण वहाँ जानेकी मनाई थी। यह कैसे सहा जा सकता है? क्या कन्याकुमारी अपवित्र हो जायेंगी? क्या पुरातन कालसे ऐसा होता चला आ रहा है? मेरे अन्तस्से यही आवाज आई कि ऐसा हो ही नहीं सकता। और ऐसा ही होता चला आ रहा हो तो पुरातन होते हुए भी यह पाप है। पुरातन होनेसे पाप बदलकर पुण्य नहीं बनता। इसलिए मेरे दिलमें यह बात और भी अधिक दृढ़ हुई कि इस कलंकको दूर करने के लिए भरसक प्रयत्न करना प्रत्येक हिन्दूका धर्म है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २९-३-१९२५