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२३७. आगामी सप्ताह

हम भला ६ अप्रैल और १३ अप्रैलको भूल सकते हैं? सन् १९१९ की ६ अप्रैलको प्रजामें नवजीवनका संचार हुआ था। १३ अप्रैलको प्रजाने नरमेध किया था और उसमें सैकड़ोंने अपनी आहुतियाँ दी थीं। यह सच है कि यह बलिदान जबर्दस्ती और अनायास हुआ था। फिर भी वह बलिदान तो था ही। जलियाँवाला बागके हत्याकाण्डमें हिन्दुओं, मुसलमानों और सिखोंका खून एक साथ बहा था। जन्मसे जो अलग-अलग मालूम होते थे, वे मृत्युके समय एक हो गये थे। हिन्द और मसलमान लडे़, भिडें मरें और मारें; मगर ऐसे झगड़े भुला दिये जायेंगे; परन्तु जलियाँवाला बागकी घटना क्या कभी भुलाई जा सकती है? वह तो जबतक हिन्दुस्तान है सदा ताजी ही बनी रहेगी। इसलिए ये दोनों दिन भुलाए नहीं जा सकते।

इस साल हम लोगोंको क्या करना चाहिए? हडतालोंके दिन चले गये। अब उनकी कुछ कीमत नहीं रही है और प्रजामें भी उतना उत्साह नहीं है। जबतक हिन्दुओं और मुसलमानोंके दिलोंमें परस्पर वैमनस्य बना रहेगा तबतक ऐसी हड़तालें हमें कुछ भी शोभा न देंगी। लेकिन जो लोग देश-सेवाको धर्मका अंग मानते हैं और शान्त और शुद्ध साधनों द्वारा ही स्वराज्य प्राप्त करना चाहते हैं, वे उस रोज आधे दिनका उपवास अथवा रोजा अवश्य रखें। वे उस रोज विशेष रूपसे मनन करते हुए ईश्वरकी आराधना करें और अपनी चित्तशुद्धि करें। वे कांग्रेसके वर्तमान कार्यक्रमको आगे बढ़ानेका भी प्रयत्न करें।

ये तीन कार्य मुख्य हैं, लेकिन ये तीनों एक साथ न हो सकेंगे। इसलिए मेरा सुझाव तो यह है कि कातनेवालोंको इस सप्ताहमें अधिक सूत कातना चाहिए, जिन्होंने अबतक विदेशी कपड़ोंका त्याग नहीं किया है उन्हें उनका त्याग करना चाहिए और दूसरोंसे उनका त्याग करनेके लिए प्रार्थना करनी चाहिए। इसके अलावा उन्हें इस सप्ताहमें खादीका प्रचार इतना करना चाहिए कि कांग्रेसके किसी भी खादी भण्डारमें खादी न बचे। सब लोगोंको एक-दूसरेके प्रति अपने-अपने दिल साफ कर लेने चाहिए और प्रत्येक हिन्दूको इस सप्ताह अन्त्यजोंकी भी कुछ-न-कुछ सेवा करनी चाहिए। अन्तमें जिनसे कुछ भी न बन पड़े वे अन्त्यज सेवाके लिए कुछ-न-कुछ धन अवश्य दें।

यदि कोई पूछे कि ऐसे हलके कार्यक्रमसे स्वराज्यका क्या काम होगा? तो मैं कहूँगा कि इसपर प्रश्नकर्त्ताने पूर्ण विचार नहीं किया है। उसे विचार करनेपर मालूम होगा कि आज इसके सिवा स्वराज्यके लिए दूसरा कोई कार्यक्रम नहीं है। हो सकता है कि इतना ही कार्य करनेसे स्वराज्य न मिले; लेकिन इसपर अमल किये बिना तो स्वराज्य नहीं मिलेगा, नहीं मिलेगा, नहीं मिलेगा। यदि कोई अश्रद्धालु विनोद करनेके लिए कहे कि तीन बार 'नहीं' लिखनेसे क्या सिद्ध हुआ? तो उसको मेरा उत्तर यह है कि तीन बार 'नहीं' लिखकर मैं साधनकी योग्यता सिद्ध करना नहीं चाहता हूँ; बल्कि मैं 'नहीं' को इस प्रकार तीन बार कहकर अपना दृढ़ विश्वास और निश्चय प्रकट करता हूँ।