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आगामी सप्ताह

सच पूछो तो उपरोक्त तीन चीजोंकी आवश्यकताके सम्बन्धमें ऐसा प्रश्न ही नहीं उठना चाहिए। इस सप्ताहमें, इसमें उत्पन्न ज्ञान और उत्साहके कारण सन् १९१९ में इन तीनों वस्तुओंने इतना महत्त्वपूर्ण रूप धारण किया था कि वे कांग्रेस कार्यक्रमका आवश्यक अंग बन गई थीं। उन दिनोंमें ही तो स्वदेशी, हिन्दू-मुस्लिम एकता और अस्पृश्यता-निवारणकी प्रतिज्ञा ली गई थी। उसके बाद यह बात तुरन्त समझ ली गई कि स्वदेशीके पालनमें स्वदेशीका अर्थ चरखा और खादी है। चरखेके प्रचारके लिए नियम बनाये गये। इसलिए जिसे हम अबतक स्वराज्य-प्रवृत्तिका आवश्यक अंग मानते आये हैं, उसके सम्बन्धमें आज शंका कैसे हो सकती है?

यदि उस समय भूल हई हो तो? तो वह हमें जरूर सुधारनी चाहिए। लेकिन कांग्रेसने उसे भूल नहीं माना है। यही नहीं उसने तो उसे प्रोत्साहन देने के प्रस्ताव भी स्वीकृत किये हैं, इसलिए भल की है, यह कहनेकी गंजाइश नहीं है।

अब रही एक बात। असहयोग गया, सविनय अवज्ञा गई, अब खादी आदिका क्या करें? "नाच न आवे आंगन टेढ़ा", यह दलील कुछ ऐसी ही है। उपरोक्त वस्तुओंके बिना सविनय अवज्ञा करना असम्भव है यदि हम यह समझ गये हों तो फिर यह दलील ही कैसे दी जा सकती है? यदि मैं कहूँ कि खादी आदिकी त्रिवेणीके बिना सविनय अवज्ञा नहीं हो सकती और जनता कहे कि सविनय अवज्ञाके बिना खादी आदि नहीं हो सकती तो हमारी हालत कोल्हूके बैलकी-सी होगी। लेकिन जो स्त्री या पुरुष ऐसी दलीलके चक्करमें नहीं पड़ते और सूतके तारकी-सी सीधी गति रखते हैं वे ही आगे बढ़ सकेंगे और आगे बढ़ते हए अपना मार्ग कभी न भूलेंगे। क्योंकि सूतका तार उनका मार्गदर्शक है। उन्हें इधर-उधर देखनेकी जरूरत नहीं, इसलिए उन्हें मार्ग भूल जानेका डर नहीं है।

यदि उन्होंने हिन्दू-मुसलमान एकता आदिका पाथेय साथ लिया हो तो उन्हें भूख आदि कष्ट भी दुःख नहीं देंगे। लेकिन यदि यह पाथेय उनके साथ न हो तो उन्हें उपवास करके अर्थात् उसके लिए तपश्चर्या करके उसे ही अपना पाथेय बनाना होगा।

रास्ता तय करते हए उन्हें मद्यपान-निषेधादि विहार दष्टिगोचर होंगे। उनमें वे रमण करेंगे। शराब पीनवालोंका दुःख भी वे उन्हें सूतके तारका सरल मार्ग दिखा कर दूर करेंगे और प्रायश्चित्त करके शुद्ध बने हुए पुराने शराबियोंको वे अपना साथी बनायेंगे।

रास्तेमें उन्हें मृतकोंके समान जीवित कंकाल मिलेंगे। वे उनके सूतके तारको देखकर नाच उठेंगे और उन्हें चरखेको चलाते देखकर स्वयं भी चरखा चलानेके लिए दौड़ेंगे और अपने अस्थि-कंकालमें रुधिरादि भर कर, मृत्युके पाशसे बचकर स्वराज्य-यज्ञमें अपना योगदान देंगे। मेरी प्रत्येक भाई-बहनसे प्रार्थना है कि वे आगामी सप्ताहमें ऐसा शुभ स्वराज्य-यज्ञ करें।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २९-३-१९२५