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स्वर्णोद्यान

और मुँह बाये देखता है, अथवा उन देशोंके सम्बन्धमें दूसरोंने जो-कुछ लिखा है वह उसीको दोहराता है।

मुझे त्रावणकोरके प्राकृतिक दृश्य जितने सुन्दर लगे उतनी ही सुन्दर वहाँकी राज्य-व्यवस्था भी लगी। राज्य-सरकारका सूत्र है, "धर्म ही हमारा बल है।" मैंने यहाँकी जैसी अच्छी सड़कें हिन्दुस्तानमें किसी दूसरी जगह नहीं देखी है। राज्यमें कहीं अन्धाधुन्धी होती है, मुझे ऐसा नहीं जान पड़ा। प्रशासकोंने बहुत वर्षोंसे प्रजाको कोई कष्ट नहीं दिया है। राज्यतंत्रमें राजा नियमोंका उल्लंघन करके कोई कार्य नहीं करता। त्रावणकोरके महाराजा ब्राह्मण और क्षत्रिय माता-पिताकी सन्तान होते हैं। दिवंगत महाराजा धर्म-परायण और विद्वान माने जाते थे। कई वर्षोंसे त्रावणकोरमें विधान सभा है। राज्यमें हिन्दुओं, मुसलमानों और ईसाइयोंकी आबादी बहुत है। छयालीस लाखसे ऊपरकी आबादीमें लगभग आधे लोग तो ईसाई हैं। मुझे ऐसा लगा है कि सभीको किसी प्रकारके भेदभावके बिना नौकरियाँ आदि दी जाती हैं। लोग अपने विचार स्वतन्त्रतापूर्वक व्यक्त कर सकते हैं। शिक्षाका प्रचार जितना त्रावणकोरमें है उतना अन्यत्र शायद ही कहीं होगा। बालकों और बालिकाओंको समानरूपसे शिक्षा मिलती है। राज्यकी आयका खासा बड़ा हिस्सा शिक्षाकी मदमें खर्च किया जाता है। त्रावणकोरमें अशिक्षित स्त्री-पुरुष मुश्किलसे ही मिलेंगे। उसकी राजधानी त्रिवेन्द्रममें लड़कियोंके लिए अलग कालेज है। सभी शालाओं और विभागों में अस्पृश्योंको प्रवेश करने की अनुमति है, इतना ही नहीं, बल्कि उनके निमित एक निश्चित रकम प्रति वर्ष खर्च की जाती है।

महारानियाँ

मैंने दोनों महारानियोंके भी दर्शन किये। इनमें से बड़ी महारानी नाबालिग महाराजाकी ओरसे राज्यका शासन चलाती है और छोटी महाराजाकी माँ है। उन दोनोंसे मिलकर और उनकी भव्य सादगी-को देखकर मैं बहत ही प्रभावित हुआ। दोनोंने ही केवल, श्वेत वस्त्र पहन रखे थे। एक-एक हल्केसे मंगल-सूत्रके अतिरिक्त उन्होंने कोई अन्य आभूषण पहना हो ऐसा मुझे दिखाई नहीं दिया। न उनको नाकमें कुछ आभूषण था और न कानमें। मुझे उनके हाथमें हीरे या मोतीकी अंगूठियाँ भी दिखाई नहीं दीं। मैंने इतनी सादगी तो एक मध्यम वर्गकी स्त्रीमें भी नहीं देखी। जितने सादे उनके वस्त्र थे उतना ही सादा उनका साज-सामान था। मैंने जब इनके इस सामानकी तुलना धनाढ्योंके साज सामानसे की तो मुझे अपने धनाढ्य वर्गपर बहत तरस आया। हम इतने मोहमें क्यों पड़े हैं?

मुझे दोनों महारानियोंमें कोई आडम्बर दिखाई नहीं दिया। बाल-महाराजा मुझे अत्यन्त सरल-स्वभाव लगे। वे एक विकच्छ धोती और कुर्तेके सिवा कुछ भी नहीं पहने थे। यदि महाराजा होनेका कोई खास चिह्न हो तो वह मैंने नहीं देखा। इन तीनोंने मेरा मन जीत लिया है। सम्भव है कि अधिक अनुभव होनेपर मुझे अपने इस कथनमें कुछ दोष दिखाई दे। मैंने दूसरे लोगोंसे भी पूछताछ की। किन्तु मुझसे यह किसीने नहीं कहा कि उनका मेरे ऊपर जो प्रभाव पड़ा है, वह ठीक नहीं है।