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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मेरे इस कथनका यह अभिप्राय नहीं है कि इस सब सादगीके बावजूद सामान्य राजदरबारोंमें जो झगड़े होते हैं, वे वहाँ न होंगे। किन्तु वहाँ झगड़े हैं या नहीं, इसका पता मुझे नहीं है। मेरा धर्म दोषोंकी खोज करना तो है नहीं। मैं तो गुणोंका शोधक और पुजारी हूँ। इन गुणोंको मैं जहाँ देखता हूँ वहीं हर्ष-विभोर और चकित हो जाता हूँ। इन गुणोंका गान करना मुझे आता है। संसारमें निर्दोष तो कोई है ही नहीं। जब मुझे ये दोष दिख जाते हैं तो उनको देखकर मझे दुःख होता है और कभी-कभी प्रसंग आनेपर मैं दुःखित हृदयसे उनका वर्णन भी कर देता हूँ।

जिसे ईश्वरने कुछ धन दिया है उसको मेरी सलाह है कि वह त्रावणकोर और कोचीनकी यात्रा करे।

रैयतकी सादगी

जैसा त्रावणकोरका राजा है, वैसी ही वहाँकी प्रजा है। मैने राजा और प्रजाकी पोशाकमें जितना साम्य यहाँ देखा उतना अन्यत्र कहीं नहीं देखा। मैंने देखा कि शासकों और रैयतकी पोशाक एक-सी है। मुझे जो-कुछ अन्तर मिला वह वहाँ रैयत अथवा उसके वर्गमें ही मिला। कुछ बहुत शिक्षित लोग अंग्रेजी पोशाक पहने मिल जाते हैं और कुछ स्त्रियाँ रेशमी साड़ियाँ पहने भी। किन्तु सामान्यतः मलाबारियोंकी पोशाक बिना लाँगकी धोती और कुर्ता है। स्त्रियाँ भी ऐसी छोटी धोती ही पहनती हैं, पर वे ऊपरसे पिछौरा या चूनरी ओढ़ती है और अब कुरती अथवा चोली का रिवाज चल पड़ा है।

इन प्रदेशोंमें खादीका प्रचार आसानीसे किया जा सकता है; क्योंकि यहाँकी स्त्रियोंको न रंगकी जरूरत है और न किनारीकी। उन्हें हमारी साड़ी या घाघरे जितनी लम्बाईकी भी जरूरत नहीं है। फिर भी कैलिको और नैनसुखने यहाँ भारी तबाही मचा रखी है। यहाँ खादी इस आन्दोलनके बाद आई है। फिर भी इस प्रदेशमें सूत कातनेवाले और बुननेवाले बहुत हैं। कन्याकुमारीके पास नागरकोइल कस्बा है। वहाँ हर हफ्ते हाट लगती है जिसमें हाथ-कता सूत बिकता है।

वाइकोम सत्याग्रह

जिस प्रदेशमें इतनी शिक्षा हो, जिसका राज्यतन्त्र अच्छा हो और जहाँ लोगोंको बहुतसे अधिकार प्राप्त हों, वहाँ इतने भयंकर रूपमें अस्पृश्यता कैसे चल रही है? यह पुराने रिवाजोंकी देन है। जब अज्ञानको प्राचीनताका आश्रय मिल जाता है तब वह ज्ञान माना जाने लगता है। यहाँ मुझे ऐसे लोग भी मिले हैं जो सच्चे मनसे मानते हैं कि मन्दिरोंके समीपके मार्गोंपर ईसाई जा सकते हैं, किन्तु अस्पृश्य नहीं जा सकते। उनमें से कोई वकील या बैरिस्टर हो तो भी वह वहाँसे नहीं जा सकता। यहाँके अस्पृश्योंमें एक स्वामी है जो स्नान और सन्ध्या-वन्दन आदि करते हैं। उन्हें संस्कृत अच्छी तरह आती है। वे संन्यासीके वेषमें रहते हैं। उनके हजारों शिष्य हैं। उनके पास हजारों एकड़ जमीन है और उन्होंने एक अद्वैताश्रम स्थापित किया है। ये स्वामीजी भी इन मार्गोपर से नहीं जा सकते। ये मन्दिर कैसे हैं? इनके गिर्द छ:फुट ऊँचा परकोटा